- 07/10/2025
बलि की 500 साल पुरानी अनूठी पंरपरा: शरद पूर्णिमा पर मानकेश्वरी देवी मंदिर में 40 बकरों की बलि, अंगूठी पहनाई और फिर आ गई देवी.. एक-एक कर बकरों को काटकर खून पीत गया बैगा

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के करमागढ़ स्थित मानकेश्वरी देवी मंदिर में शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर 500 साल पुरानी परंपरा निभाई गई। यहां सैकड़ों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में 40 बकरों की बलि चढ़ाई गई। सबसे चौंकाने वाली बात तो यह रही कि बैगा ने बलि के बाद बकरों का खून पी लिया। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस दिन देवी बैगा के शरीर में प्रवेश कर जाती हैं, इसलिए खून पीने से बैगा के शरीर पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता। बलि पूजा के बाद प्रसाद वितरण भी किया गया। इस पूरी घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
यह परंपरा रायगढ़ राजघराने की कुलदेवी मानकेश्वरी मां से जुड़ी हुई है। जिला मुख्यालय से मात्र 27 किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर में हर साल शरद पूर्णिमा पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस बार कोरोना काल के बाद बलि की संख्या पहले की तुलना में कम रही, लेकिन धार्मिक उत्साह में कोई कमी नहीं आई।
मानकेश्वरी देवी मंदिर: राजपरिवार की कुलदेवी और 500 साल पुरानी मान्यता
रायगढ़ जिले के करमागढ़ गांव में बसे मानकेश्वरी देवी मंदिर की स्थापना गोड़ी राजा चक्रधर सिंह के परिवार ने की थी। यह मंदिर रियासतकालीन परंपराओं का जीवंत प्रतीक है। मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष युधिष्ठिर यादव के अनुसार, मां मानकेश्वरी देवी की मान्यता इतनी प्रबल है कि दूसरे राज्यों से भी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। ओडिशा के सुंदरगढ़ और सारंगढ़ जिले के अलावा रायगढ़ के जोबरो, तमनार, गौरबहरी, हमीरपुर, लामदांड, कुरसलेंगा, भगोरा, मोहलाई, बरकछार, चाकाबहाल, अमलीदोड़ा जैसे गांवों से भक्त मन्नत लेकर आते हैं। मन्नत पूरी होने पर वे बकरे और नारियल चढ़ाते हैं।
श्रद्धालुओं का विश्वास है कि देवी बैगा के शरीर में आकर भक्तों की रक्षा करती हैं। बलि के बाद बैगा पर कोई साइड इफेक्ट नजर नहीं आता, जो चमत्कार के रूप में देखा जाता है। घरघोड़ा नगर पंचायत अध्यक्ष सुरेंद्र चौधरी ने बताया, “श्रद्धालु अपनी इच्छा से बलि देते हैं, जिससे उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह परंपरा रियासत काल से चली आ रही है।”
निशा पूजा: देवी के आगमन का संकेत
बलि पूजा से एक रात पहले, यानी 5 अक्टूबर को निशा पूजा का आयोजन किया गया। पूजा समिति के सदस्यों ने विधि-विधान से यह पूजा संपन्न की। इस दौरान राजपरिवार से एक ढीली अंगूठी बैगा के अंगूठे में पहनाई जाती है, जो उसके नाप की नहीं होती। मान्यता है कि अगले दिन बलि पूजा के समय यह अंगूठी बैगा के अंगूठे पर पूरी तरह कस जाती है, जो देवी के आगमन का संकेत देती है। इसके बाद श्रद्धालु बैगा के पैर धोते हैं, सिर पर दूध डालकर पूजा करते हैं और माथा टेकते हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन दोपहर बाद बलि पूजा शुरू हुई, जिसमें सैकड़ों भक्त शामिल हुए। पहले 150-200 बकरों की बलि चढ़ाई जाती थी, लेकिन कोरोना महामारी के बाद यह संख्या घटकर 100 रह गई। इस बार मात्र 40 बकरों की बलि दी गई। पूजा के बाद प्रसाद वितरण किया गया, जिसमें भक्तों ने उत्साह से हिस्सा लिया।