- 08/05/2025
कैश कांड: जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से किया इंकार, CJI ने राष्ट्रपति-PM को लिखा पत्र, महाभियोग की सिफारिश?


जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास से नकदी बरामद होने के मामले में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक गंभीर पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा की प्रतिक्रिया को संलग्न किया है। यह पत्र सुप्रीम कोर्ट की ‘इन-हाउस प्रोसीजर’ के तहत भेजा गया है।
सूत्रों के अनुसार, जांच समिति की रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ नकदी बरामदगी के आरोपों की पुष्टि होने के बाद CJI ने उन्हें इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने का सुझाव दिया था। हालांकि, जस्टिस वर्मा ने इस सलाह को ठुकरा दिया और पद पर बने रहने का फैसला किया, जिसके बाद CJI ने महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश की है। अब कार्यपालिका और संसद को जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग पर फैसला लेना है, जिसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी।
जांच में नकदी की पुष्टि
सुप्रीम कोर्ट के बयान के अनुसार, CJI ने 3 मई को मिली जांच समिति की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा के 6 मई के जवाब को राष्ट्रपति और PM के साथ साझा किया है। समिति में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे। समिति ने 14 मार्च को जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में आग लगने की घटना के बाद जांच शुरू की थी, जिसमें नकदी बरामद हुई थी।
जांच के दौरान समिति ने दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा, दिल्ली अग्निशमन सेवा प्रमुख सहित 50 से अधिक लोगों के बयान दर्ज किए, जो घटना के पहले प्रतिक्रियादाता थे। समिति ने सबूतों के आधार पर नकदी बरामदगी की पुष्टि की, लेकिन जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को दिए जवाब में इन आरोपों का खंडन किया।
क्या है इन–हाउस प्रोसीजर?
इन-हाउस प्रोसीजर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई एक आंतरिक अनुशासनात्मक प्रक्रिया है, जिसे 1997 में तैयार किया गया और 1999 में संशोधित रूप में स्वीकार किया गया। यह प्रक्रिया उच्च न्यायपालिका में कदाचार के मामलों की जांच के लिए बनाई गई है। इसके तहत तीन जजों की समिति आरोपों की जांच कर रिपोर्ट देती है, जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई तय होती है।
महाभियोग की प्रक्रिया
महाभियोग के लिए संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत की जरूरत होती है। अगर संसद प्रस्ताव पारित करती है, तो राष्ट्रपति जज को हटा सकते हैं। हालांकि, भारत में आज तक किसी जज को महाभियोग के जरिए हटाया नहीं गया है। इस मामले ने न्यायपालिका की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, और जस्टिस वर्मा के भविष्य पर फैसला अब संसद के हाथ में है।