• 22/05/2025

वक्फ संशोधन एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत का फैसला रखा सुरक्षित, केंद्र और याचिकाकर्ताओं में तीखी बहस, जानिए किसने क्या कहा?

वक्फ संशोधन एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत का फैसला रखा सुरक्षित, केंद्र और याचिकाकर्ताओं में तीखी बहस, जानिए किसने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन एक्ट 2024 के खिलाफ अंतरिम राहत की मांग पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तीन दिन की मैराथन सुनवाई के बाद यह निर्णय लिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को चेतावनी दी कि संसद द्वारा पारित कानून को असंवैधानिक करार देने या उस पर रोक लगाने के लिए बहुत मजबूत आधार चाहिए, क्योंकि इसे अंतिम फैसले तक संवैधानिक माना जाता है।

याचिकाकर्ताओं और केंद्र के बीच तर्कवितर्क

सुनवाई के पहले दिन याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी, हुजैफा अहमदी और सी.यू. सिंह ने दलीलें दीं। दूसरे और तीसरे दिन केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों ने जवाब दिया, जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने दो घंटे की री-बटल जिरह की। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य दलीलें रखीं, जिनका समर्थन वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार, राकेश द्विवेदी, मनिंदर सिंह और गोपाल शंकरनारायण ने किया।

याचिकाकर्ताओं के विरोध के प्रमुख बिंदु

याचिकाकर्ताओं ने वक्फ संशोधन एक्ट के कई प्रावधानों पर आपत्ति जताई, जिनमें शामिल हैं:

  • वक्फ बाय यूजर का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन।
  • वक्फ बोर्ड के संपत्ति विवादों का फैसला सरकार के हाथों में होना।
  • वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति।
  • प्राचीन स्मारकों में धार्मिक गतिविधियों पर संभावित असर।
  • वक्फ करने के लिए कम से कम 5 साल तक मुस्लिम होने की शर्त।
  • आदिवासी जमीन पर वक्फ बोर्ड के दावों पर रोक।

याचिकाकर्ताओं ने इन प्रावधानों को मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करार दिया।

केंद्र सरकार का जवाब

केंद्र ने दलील दी कि कानून संसद की पूरी प्रक्रिया के बाद बनाया गया है और इसे अंतिम सुनवाई से पहले रोकना अनुचित होगा। सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नहीं हैं और वे पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते। केंद्र ने तर्क दिया कि:

  • वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे मौलिक अधिकारों का दर्जा नहीं मिल सकता।
  • वक्फ बाय यूजर का रजिस्ट्रेशन 1923 के कानून में भी अनिवार्य था, और 102 साल बाद भी इसका विरोध अनुचित है।
  • गैर-मुस्लिमों की संपत्ति को वक्फ करने का प्रावधान 2013 में आया था, जिसे सुधारते हुए 5 साल की शर्त जोड़ी गई।
  • आदिवासी जमीन को संविधान और नए कानून दोनों संरक्षण देते हैं।
  • वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की भूमिका सीमित होगी।
  • प्राचीन स्मारकों में धार्मिक गतिविधियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

पूरे गांव वक्फ का दावा

सुनवाई के अंत में एक वकील ने तमिलनाडु के एक गांव का उदाहरण दिया, जहां 1500 साल पुराना हिंदू मंदिर है और सदियों से हिंदू निवास करते हैं, लेकिन वक्फ बोर्ड ने पूरे गांव की जमीन पर दावा किया है। उन्होंने कहा कि देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसी घटनाएं हुई हैं। नए कानून को ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए जरूरी बताते हुए याचिकाकर्ताओं की रोक की मांग का विरोध किया गया।