- 03/07/2025
किसका खेल बिगाड़ेंगे केजरीवाल? बिहार में सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का AAP का बड़ा ऐलान, टेंशन में ये पार्टी


बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले आम आदमी पार्टी (AAP) ने बड़ा सियासी दांव खेलते हुए सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को यह घोषणा की, जिसने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। AAP का यह फैसला, जो पहले इंडिया गठबंधन का हिस्सा थी, अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और महागठबंधन दोनों के लिए चुनौती बन सकता है।
केजरीवाल का ऐलान: कोई गठबंधन नहीं, अकेले दिखाएंगे दम
अरविंद केजरीवाल ने गुजरात दौरे के दौरान प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “आम आदमी पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर अकेले लड़ेगी। इंडिया गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव तक सीमित था।” उन्होंने कांग्रेस पर भी निशाना साधा और आरोप लगाया कि गुजरात के विसावदर उपचुनाव में कांग्रेस ने AAP के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर वोटों का बंटवारा किया। केजरीवाल ने कहा, “हम बिहार में अपनी ताकत दिखाएंगे और जनता के लिए काम की राजनीति करेंगे।”
इससे पहले, AAP के दिल्ली अध्यक्ष और पूर्व मंत्री सौरभ भारद्वाज ने 11 जून को इसकी पुष्टि करते हुए कहा था कि पार्टी बिहार में किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेगी। पार्टी के बिहार प्रभारी और दिल्ली से विधायक अजेश यादव ने भी कहा, “बिहार की जनता बदलाव चाहती है। BJP और कांग्रेस की नूरा-कुश्ती से लोग तंग आ चुके हैं। AAP दिल्ली और पंजाब के मॉडल को बिहार में लागू करेगी।”
AAP की रणनीति: बिहार में संगठन का विस्तार
AAP ने बिहार में अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष राकेश यादव के नेतृत्व में ‘केजरीवाल जनसंपर्क यात्रा’ शुरू की गई है, जिसे जनता से अच्छा समर्थन मिल रहा है। तरैया विधानसभा क्षेत्र से AAP के संभावित उम्मीदवार मनोरंजन सिंह ने जनसंपर्क के दौरान कहा, “दिल्ली और पंजाब में AAP की सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं। बिहार की जनता भी ऐसी ही सरकार चाहती है।”
पार्टी ने बिहार में संगठन को मजबूत करने के लिए गांव-गांव तक कमेटियां बनाने की योजना बनाई है। AAP के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री संदीप पाठक ने कहा, “बिहार में मजबूत संगठन के बिना चुनाव नहीं जीता जा सकता। हम हर गांव में अपनी कमेटियां बनाएंगे और स्थानीय निकाय चुनावों से अपनी शुरुआत करेंगे।”
AAP की बिहार में स्थिति: क्या बनेगी ताकत?
AAP ने 2022 में गुजरात विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीतकर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल किया था। हालांकि, हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा, जहां वह सत्ता से बाहर हो गई। इसके बावजूद, AAP बिहार में अपनी नई पारी शुरू करने के लिए उत्साहित है। पार्टी का दावा है कि दिल्ली और पंजाब में लागू किए गए मुफ्त बिजली, बेहतर शिक्षा, और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे मॉडल को बिहार में भी लागू किया जाएगा।
बिहार में AAP की मौजूदगी अभी तक सीमित रही है, लेकिन पार्टी का जोर दलित और मुस्लिम बहुल सीटों पर है। दिल्ली में AAP ने 2015 और 2020 में सभी 12 अनुसूचित जाति (SC) सीटें जीती थीं, हालांकि 2025 में उसका प्रदर्शन कमजोर रहा। बिहार में भी पार्टी इन वर्गों को साधने की कोशिश कर रही है।
सियासी समीकरणों पर असर: किसका खेल बिगड़ेगा?
बिहार विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर 2025 में प्रस्तावित हैं, और यह एक बहुकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है। वर्तमान में NDA (BJP और JD(U) के नेतृत्व में) और महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, और अन्य) के बीच मुख्य टक्कर है। AAP का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला दोनों गठबंधनों के लिए चुनौती बन सकता है। खासकर महागठबंधन के लिए, क्योंकि AAP का वोट बैंक संभावित रूप से RJD और कांग्रेस के वोटों में सेंध लगा सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि AAP का प्रवेश बिहार में वोटों का बंटवारा कर सकता है, जिसका फायदा NDA को मिल सकता है। BJP के साथ गठबंधन में JD(U) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और LJP (रामविलास) के चिराग पासवान पहले ही सभी 243 सीटों पर NDA की जीत का दावा कर चुके हैं। दूसरी ओर, RJD नेता संजय यादव ने AAP के फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा, “बिहार की जनता नीतीश सरकार से त्रस्त है। AAP का स्वागत है, लेकिन हमें विश्वास है कि महागठबंधन ही जनता की पसंद बनेगा।”
क्या है चुनौतियां और संभावनाएं?
AAP के लिए बिहार में संगठनात्मक कमजोरी और स्थानीय नेताओं की कमी एक बड़ी चुनौती है। इसके बावजूद, पार्टी ‘केजरीवाल मॉडल’ को बिहार के ग्रामीण और शहरी मतदाताओं तक पहुंचाने की कोशिश कर रही है। 17 जून को पटना में AAP के प्रस्तावित धरना-प्रदर्शन से इसकी शुरुआत होगी, जिसमें दिल्ली में बिहारवासियों के साथ कथित भेदभाव का मुद्दा उठाया जाएगा।
AAP का बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला साहसिक होने के साथ-साथ जोखिम भरा भी है। यह कदम न केवल बिहार की राजनीति में नए समीकरण बना सकता है, बल्कि दिल्ली में हार के बाद AAP की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को भी दर्शाता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केजरीवाल का ‘झाड़ू’ बिहार की सियासी जमीन पर कितना असर डाल पाता है और क्या यह NDA या महागठबंधन के लिए बड़ा खतरा बन पाएगा।