- 18/09/2025
Breaking: नान घोटाला केस में बड़ा अपडेट, रिटायर्ड IAS आलोक शुक्ला सरेंडर करने पहुंचे ED कोर्ट

छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित नान घोटाला मामले में रिटायर्ड आईएएस अधिकारी डॉ. आलोक शुक्ला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रायपुर की स्पेशल कोर्ट में सरेंडर करने पहुंचे, लेकिन कोर्ट ने सरेंडर कराने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभी सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर अपलोड नहीं हुआ है, इसलिए सरेंडर नहीं कराया जा सकता। इसके बाद आलोक शुक्ला वापस लौट गए। सुप्रीम कोर्ट ने 2 हफ्ते कस्टोडियल और 2 हफ्ते ज्यूडिशियल रिमांड का आदेश दिया है।
16 सितंबर 2025 को हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने नान घोटाले में आलोक शुक्ला और पूर्व आईएएस अनिल टुटेजा को बिलासपुर हाईकोर्ट से मिली अग्रिम जमानत रद्द कर दी। कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कस्टडी में लेने का निर्देश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या आदेश दिए?
नान घोटाला केस में रिटायर्ड आईएएस आलोक शुक्ला को हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत मिली हुई थी, लेकिन ईडी ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। ईडी ने कोर्ट में बताया कि आरोपियों ने 2015 में दर्ज नान घोटाला मामले और जांच को प्रभावित करने की कोशिश की थी। जांच अभी पूरी नहीं हुई है। जस्टिस सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सुनवाई के बाद हाईकोर्ट से मिली अग्रिम जमानत को रद्द कर दिया। कोर्ट ने ईडी की कस्टडी के लिए आदेश जारी किया और कहा कि पहले 2 हफ्ते ईडी की हिरासत और उसके बाद 2 हफ्ते न्यायिक हिरासत में रहना होगा। इसके बाद ही जमानत का विचार किया जा सकेगा।
इसके साथ ही बेंच ने ईडी को 3 महीने और आर्थिक अपराध विंग (ईओडब्ल्यू) को 2 महीने में जांच पूरी करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि पेंडिंग मामलों का निपटारा समय पर होना चाहिए, ताकि न्याय में देरी न हो। यह फैसला छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच को तेज करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
क्या है नान घोटाला?
नान घोटाला फरवरी 2015 में सामने आया था, जब एसीबी/ईओडब्ल्यू ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के प्रभावी संचालन के लिए जिम्मेदार नोडल एजेंसी नागरिक आपूर्ति निगम (एनएएन) के 25 परिसरों पर एक साथ छापे मारे थे। छापों के दौरान कुल 3.64 करोड़ रुपये नकद जब्त किए गए थे। इसके अलावा, एकत्र किए गए चावल और नमक के कई नमूनों की गुणवत्ता जांच की गई, जो घटिया और मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त पाई गई। यह घोटाला पीडीएस के तहत गरीबों को वितरित होने वाले राशन में अनियमितताओं से जुड़ा है, जिसमें चावल और नमक की खरीद-बिक्री में भ्रष्टाचार का आरोप है।
कैसे खुलासा हुआ घोटाला?
ईओडब्ल्यू ने अपनी एफआईआर में बताया कि डॉ. आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए तत्कालीन महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा से असम्यक लाभ लिया। उनका मकसद था कि वर्मा को लोक कर्तव्य को गलत तरीके से करने के लिए प्रेरित किया जाए, ताकि वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए सरकारी कामकाज में गड़बड़ी कर सकें। इसके बाद, सभी मिलकर एक आपराधिक षड्यंत्र में शामिल हुए और राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में काम करने वाले उच्चाधिकारियों से प्रक्रियात्मक दस्तावेज और विभागीय जानकारी में बदलाव करवाया। इन बदलावों का मुख्य उद्देश्य नागरिक आपूर्ति निगम के खिलाफ दर्ज मामले (अप.क. 09/2015) में अपने पक्ष में जवाब तैयार करना था, ताकि हाईकोर्ट में मजबूत पक्ष रख सकें और अग्रिम जमानत प्राप्त कर सकें।
ईडी ने 2015 के मामले के बाद मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगाए, और जांच में पाया गया कि मामला 5 साल से अधिक समय से लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने इस देरी पर चिंता जताई थी।
इन धाराओं के तहत दर्ज एफआईआर
छत्तीसगढ़ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने डॉ. आलोक शुक्ला, अनिल टुटेजा, सतीश चंद्र वर्मा और अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 2018 की धाराओं 7, 7क, 8, और 13(2) तथा भारतीय दंड संहिता की धाराएं 182, 211, 193, 195-ए, 166-ए, और 120बी के तहत अपराध दर्ज किए गए हैं। ये धाराएं भ्रष्टाचार, सबूतों के साथ छेड़छाड़, आपराधिक षड्यंत्र और सरकारी काम में बाधा डालने से जुड़ी हैं।
फरवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा को इस मामले में अग्रिम जमानत दी थी, लेकिन आलोक शुक्ला के मामले में सख्त रुख अपनाया गया। अब ऑर्डर अपलोड होने के बाद शुक्ला को सरेंडर करना होगा।