• 02/11/2024

आस्था या अंधविश्वास! मौत को चुनौती देने वाली इस परंपरा को क्यों निभा रहा पूरा गांव

आस्था या अंधविश्वास! मौत को चुनौती देने वाली इस परंपरा को क्यों निभा रहा पूरा गांव

उज्जैन के भिडावद गांव में रोंगटे खड़े करने वाली अनोखी परंपरा निभाई गई। अब इस मान्यता को आस्था कहें या अंधविश्वास , लेकिन सदियों से ऐसा किया जा रहा है। दरअसल दीपावली के दूसरे दिन पड़वा पर यह अनूठी परंपरा निभाई जाती है। गांव के लोग एकादशी से मन्नत रखकर उपवास करते हैं और गोवर्धन पूजा के साथ भवानी माता मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। जिसके बाद वह जमीन पर उलटा लेट जाते हैं और गौवंश का जत्था उन्हें रौंदते हुए निकलता है।

ग्रामीणों के मुताबिक इस दौरान कभी कोई शख्स चोटिल नहीं होता है। गांव में ये परंपरा कब शुरू हुई किसी को याद नहीं, लेकिन यहां के बुजुर्ग हों या जवान सभी इसे देखते हुए बड़े हुए। इस गांव और आसपास के इलाकों के वो लोग यहां आते हैं जिन्हें मन्नत मांगनी होती है या फिर जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है। यही नहीं, यह सब दीपावली के पांच दिन पहले ग्यारस के दिन अपना घर छोड़ देते हैं और यहां माता भवानी के मंदिर में आकर रहने लगते हैं।

जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है, वो गायों के सामने जमीन पर लेट जाते हैं। लोग गांव के चौक पर जमा हो जाते हैं। फिर मन्नत मांगने वाले लोगों का एक जुलूस पूरे गांव में निकाला जाता है। जुलूस खत्म होने के बाद मन्नत मांगने वाले लोगों को मुंह के बल जमीन पर लिटाया जाता है। उसके बाद गायों को छोड़ दिया जाता है। ये गाय दौड़ते हुए जमीन पर लेटे हुए मन्नतियों के ऊपर से गुजर जाती हैं।

गांव वालों की आस्था है कि गौ माता सुख समृद्धि और शांति का प्रतीक है। शास्त्रों में भी गौ माता के शरीर में देवी देवताओं का वास बताया गया है। पड़वा वाले दिन ढोल धमाकों के बीच चौक में गाय की पूजा की जाती है। मन्नती पूजा की थाली सजा कर लाते हैं, इसमें पूजन सामग्री के साथ गाय का गोबर रखा जाता है। इसकी पूजा साक्षात गौरी के रूप में की जाती है। पूजा के मां गौरी का आह्वान परंपरागत गीत गाकर करते हैं।