- 04/07/2025
बड़ी खबर: श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में हिंदू पक्ष को करारा झटका, हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह को विवादित ढांचा मानने से किया इनकार

श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष को करारा झटका दिया है। जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने अपने फैसले में शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित करने की मांग को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों और याचिका के आधार पर शाही ईदगाह को विवादित ढांचा मानने का कोई आधार नहीं है। यह फैसला 5 मार्च 2025 को हिंदू पक्षकार महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के बाद आया, जिसकी बहस 23 मई 2025 को पूरी हुई थी।
हिंदू पक्ष का दावा: ‘ईदगाह की जगह पहले था मंदिर’
हिंदू पक्षकार महेंद्र प्रताप सिंह ने कोर्ट में दावा किया कि शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर स्थित प्राचीन केशवदेव मंदिर को तोड़कर किया गया था। उन्होंने मासिर-ए-आलमगीरी और मथुरा के तत्कालीन कलेक्टर एफ.एस. ग्राउस की ऐतिहासिक पुस्तकों का हवाला देते हुए कहा कि इस स्थान पर पहले मंदिर था। सिंह ने तर्क दिया कि शाही ईदगाह मस्जिद के पक्ष में न तो खसरा-खतौनी में कोई रिकॉर्ड है, न ही नगर निगम में इसका उल्लेख है, और न ही मस्जिद की ओर से कोई टैक्स जमा किया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि मस्जिद प्रबंधन के खिलाफ बिजली चोरी की शिकायत दर्ज हो चुकी है।
सिंह ने अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह बाबरी मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित किया गया था, उसी तरह शाही ईदगाह को भी विवादित ढांचा घोषित किया जाए। उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वे कराने की मांग की, ताकि मस्जिद परिसर में हिंदू धार्मिक प्रतीकों की मौजूदगी साबित हो सके। उनके अनुसार, कई विदेशी यात्रियों ने अपने लेखों में इस स्थान पर मंदिर का उल्लेख किया है, लेकिन मस्जिद का कोई जिक्र नहीं किया। इस दलील का अन्य हिंदू पक्षकारों ने भी समर्थन किया।
मस्जिद पक्ष का जोरदार विरोध
शाही ईदगाह मस्जिद प्रबंधन समिति ने हिंदू पक्ष की याचिका का कड़ा विरोध किया। मस्जिद पक्ष ने तर्क दिया कि यह संपत्ति वक्फ बोर्ड के अधीन है और इसका धार्मिक स्वरूप 15 अगस्त 1947 को जैसा था, उसे प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 के तहत बदला नहीं जा सकता। उन्होंने 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह ट्रस्ट के बीच हुए समझौते का हवाला दिया, जिसके तहत दोनों धार्मिक स्थलों का सह-अस्तित्व स्वीकार किया गया था। मस्जिद पक्ष ने यह भी कहा कि हिंदू पक्ष के दावों को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं हैं।
हाईकोर्ट का फैसला और तर्क
जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 23 मई 2025 को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। अपने निर्णय में कोर्ट ने कहा कि हिंदू पक्ष द्वारा पेश किए गए तथ्य और साक्ष्य शाही ईदगाह को विवादित ढांचा घोषित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 1968 का समझौता तब तक मान्य है, जब तक इसे कानूनी रूप से चुनौती नहीं दी जाती।
सुप्रीम कोर्ट की रोक और आगे की कार्यवाही
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2024 में शाही ईदगाह परिसर के सर्वेक्षण के लिए हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त कोर्ट कमिश्नर के आदेश पर रोक लगा दी थी। यह रोक नवंबर 2024 तक बढ़ा दी गई, हालांकि हाईकोर्ट में याचिकाओं की सुनवाई जारी रखने की अनुमति दी गई। हिंदू पक्ष ने हाईकोर्ट के ताजा फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया है।
दोनों पक्षों की प्रतिक्रिया
हिंदू पक्षकार महेंद्र प्रताप सिंह ने फैसले को निराशाजनक बताया और कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे। उन्होंने जोर देकर कहा कि मस्जिद परिसर में हिंदू धार्मिक प्रतीक मौजूद हैं, जो मंदिर के पूर्व अस्तित्व को साबित करते हैं। दूसरी ओर, शाही ईदगाह प्रबंधन समिति ने फैसले का स्वागत करते हुए इसे अपनी कानूनी स्थिति की जीत बताया। समिति के वकील ने कहा कि यह निर्णय सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने में मदद करेगा।
विवाद का मूल
मथुरा में 13.37 एकड़ भूमि पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद एक साथ स्थित हैं। हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर किया गया, जबकि मस्जिद पक्ष इसे वक्फ संपत्ति मानता है। इस मामले में 18 याचिकाएं हाईकोर्ट में लंबित हैं, जिनमें मस्जिद हटाने, सर्वेक्षण और भूमि के मालिकाना हक की मांग की गई है। अगली सुनवाई 19 नवंबर 2025 को होगी।