- 13/02/2025
गिरफ्तार होंगे पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा? हाईकोर्ट ने खारिज की अग्रिम जमानत याचिका, नान घोटाले में बढ़ेंगी मुश्किले
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नान घोटाला मामले में छत्तीसगढ़ के पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा को बड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है। जिसके बाद अब उनके सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी है। मामले की सुनवाई के बाद आज हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।
आपको बता दें नान घोटाला के मामले में ईओडब्ल्यू/एसीबी ने पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है। गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका लगाई थी।
उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि महाधिवक्ता के खिलाफ असंवैधानिक रूप से केस दर्ज किया गया है। महाधिवक्ता की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की गई थी। लिहाजा उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए धारा 17(ए) के तहत अनुमति जरूरी है। लेकिन सरकार ने कोई अनुमति नहीं ली है और सीधे केस दर्ज कर लिया गया। यह केस चलने योग्य नहीं है।
क्या है मामला?
दरअसल छत्तीसगढ़ में हुए बहुचर्चित नान घोटाला के मामले में ईओडब्ल्यू -एसीबी ने दो पूर्व नौकरशाहों अनिल टुटेजा, आलोक शुक्ला के साथ ही पूर्व महाधिवक्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया था। ईडी के प्रतिवेदन के बाद एसीबी-ईओडब्ल्यू ने यह एफआईआर दर्ज किया है। वाट्सअप चैट को इस पूरी कार्रवाई का आधार बनाया गया है।
ईओडब्ल्यू ने तीनों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 तथा संशोधित अधिनियम 2018 की धारा 7,7क,8, 13(2) एवं आईपीसी की धारा 182, 211, 193, 195-ए, 166-ए, 120 बी के तहत अपराध दर्ज किया है।
ईओडब्ल्यू द्वारा दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि टुटेजा के घर आयकर विभाग के छापे में प्राप्त डिजिटल साक्ष्यों से पता चला कि अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला न सिर्फ ईडी द्वारा दर्ज ईसीआईआर प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास कर रहे थे, बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार के ब्यूरोक्रेट और संवैधानिक पद पर बैठे अधिकारियों के साथ मिलकर कोर्ट में चल रहे अपराध क्रमांक 9/2015 के ट्रायल (नान घोटाले के मामले में) को भी प्रभावित करने का प्रयास कर रहे थे।
छत्तीसगढ़ की पूरी ब्यूरोक्रेसी इनके नियंत्रण में थी
एफआईआर में कहा गया है कि अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला का साल 2019 से छत्तीसगढ़ सरकार के संचालन, नीति निर्धारण एवं अन्य कार्यों में काफी हस्तक्षेप था। ये दोनों सरकार के सबसे शक्तिशाली अधिकारी थे, तथा सभी महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थापना और स्थानांतरण में इनका सीधा हस्तक्षेप था। एक तरह से छत्तीसगढ़ की पूरी ब्यूरोक्रेसी इनके नियंत्रण में थी यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
एफआईआर में कहा गया है कि वांछित अधिकारियों की वांछित पदस्थापना इनके नियंत्रण में थी। जिसकी वजह से राज्य सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ अधिकारियों पर इनका नियंत्रण था।
अदालत में प्रस्तुत करने वाला EOW का जवाबदावा भी अपने पक्ष में बनवाया
एफआईआर में आगे कहा गया है कि इनके वाट्सअप चैट और दस्तावेजों के अवलोकन से पाया गया कि आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा ने अपने पदों का दुरुपयोग करते हुए तत्कालीन महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा को असम्यक लाभ दिया जिससे कि उनसे लोक कर्तव्य को अनुचित रुप से पालन कराया जा सके। इन्होंने साथ मिलकर आपराधिक षड़यंत्र करते हुए राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) में पदस्थ उच्चाधिकारियों के प्रक्रियात्मक एवं विभागीय कार्यों से संबंधित दस्तावेज एवं जानकारी में बदलाव कराते हुए अपने खिलाफ दर्ज नान घोटाले के मामले में अदालत में प्रस्तुत किए जाने वाले जवाबदावे अपने पक्ष में बनवाया, जिससे उन्हें अग्रिम जमानत का लाभ मिल सके। साथ ही ईडी द्वारा दर्ज ईसीआईआर में भी अग्रिम जमानत का लाभ प्राप्त हो। इसके साथ ही गवाहों का बयान बदलने के लिए भी दबाव बनवाया गया।
एफआईआर में कहा गया है कि राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरों में पदस्थ उच्चाधिकारियों से मिलकर नान घोटाले से संबंधित दस्तावेज, वाट्सअप चैट के माध्यम से प्राप्त करते हुए अभियोजन साक्ष्यों को प्रभावित किया गया।