- 07/08/2025
फोन टैपिंग: नेता, जज, नौकरशाह और पत्रकारों सहित 600 लोगों के फोन टैपिंग का सनसनीखेज खुलासा, जांच में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य

तेलंगाना में 2023 विधानसभा चुनावों से ठीक पहले हुए फोन टैपिंग कांड ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हंगामा मचा दिया है। हैदराबाद पुलिस की जांच में खुलासा हुआ है कि भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के दौरान विशेष खुफिया ब्यूरो (एसआईबी) ने कथित तौर पर 600 से अधिक लोगों के फोन अवैध रूप से टैप किए थे। इस मामले ने न केवल राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहस छेड़ दी है, बल्कि निजता के उल्लंघन और सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग जैसे गंभीर सवाल भी खड़े किए हैं।
जांच में क्या हुआ खुलासा?
हैदराबाद पुलिस की विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट के अनुसार, 15 नवंबर से 30 नवंबर 2023 तक, विधानसभा चुनावों के दौरान, एसआईबी की विशेष ऑपरेशन टीम (एसओटी) ने बड़े पैमाने पर फोन टैपिंग की। इस दौरान बीएसएनएल, वोडाफोन और जियो जैसे नेटवर्क के जरिए करीब 4,500 फोनों की एक साथ निगरानी की गई। जांच में पाया गया कि टैपिंग का दायरा व्यापक था, जिसमें निम्नलिखित लोग शामिल थे:
- राजनीतिक नेता: वर्तमान मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी, बीजेपी और कांग्रेस के नेता, और बीआरएस की नेत्री के. कविता जैसे प्रमुख चेहरों के फोन टैप किए गए।
- पत्रकार और मशहूर हस्तियां: कई पत्रकारों, चुनाव विश्लेषकों और मशहूर हस्तियों की निजी बातचीत पर नजर रखी गई।
- नौकरशाह और जज: आईएएस, आईपीएस अधिकारियों के साथ-साथ हाईकोर्ट के जजों के फोन भी टैपिंग के दायरे में थे।
- व्यापारी और रिश्तेदार: कारोबारियों, पार्टी कार्यकर्ताओं और उनके रिश्तेदारों तक की निगरानी की गई।
जांच में यह भी सामने आया कि टैपिंग की शुरुआत 2018-19 से हो चुकी थी, लेकिन 2023 के चुनावों से पहले यह अभियान अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया।
मुख्य आरोपी और गिरफ्तारियां
इस मामले में पूर्व एसआईबी प्रमुख टी. प्रभाकर राव मुख्य आरोपी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2025 में उन्हें भारत लौटने के लिए पासपोर्ट उपलब्ध कराने का आदेश दिया और अगले आदेश तक उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। मार्च 2024 में, एसआईबी के निलंबित डीएसपी प्रणीत राव सहित चार पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया था। इन पर इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से खुफिया जानकारी मिटाने और अवैध टैपिंग के आरोप हैं। हालांकि, बाद में इन्हें जमानत मिल गई।
शिकायत की शुरुआत तब हुई जब एसआईबी के एक सहायक पुलिस अधीक्षक (एएसपी) ने पंजागुट्टा पुलिस स्टेशन में डीएसपी प्रणीत राव के खिलाफ अवैध गतिविधियों की शिकायत दर्ज की। इसके बाद जांच शुरू हुई, जिसमें कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बी. महेश कुमार गौड़ और केंद्रीय मंत्री बंदी संजय कुमार जैसे नेताओं से भी पूछताछ की गई।
बीआरएस का जवाब और राजनीतिक विवाद
बीआरएस ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे कांग्रेस सरकार द्वारा उनकी छवि खराब करने की साजिश बताया है। बीआरएस एमएलसी श्रवण कुमार दासोजू ने दावा किया कि यदि टैपिंग हुई भी, तो वह मुख्य सचिव, डीजीपी और गृह सचिव की उच्चस्तरीय समिति की अनुमति से कानूनी रूप से हुई होगी, और बीआरएस का इससे कोई लेना-देना नहीं है।
दूसरी ओर, बीआरएस विधायक पदी कौशिक रेड्डी ने उलटे मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पर फोन टैपिंग के आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि रेवंत रेड्डी ने कई महिला सेलिब्रिटीज और मंत्रियों के फोन टैप कराए और इसकी जानकारी का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए किया। कौशिक ने सीबीआई और ईडी से जांच की मांग की है।
जांच में चुनौतियां
जांच दल के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि एसआईबी की विशेष ऑपरेशन टीम हर छह महीने में निगरानी के रिकॉर्ड नष्ट कर देती थी, जिससे सबूत जुटाना मुश्किल हो रहा है। इसके बावजूद, पुलिस ने कई इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और अन्य साक्ष्यों के आधार पर जांच को आगे बढ़ाया है।
CBI जांच की मांग
इस मामले ने तेलंगाना की राजनीति में भूचाल ला दिया है। बीजेपी ने जांच को सीबीआई को सौंपने की मांग की है, क्योंकि उनका मानना है कि जिम्मेदार राजनीतिक हस्तियों को अभी तक आरोपी नहीं बनाया गया। दूसरी ओर, कांग्रेस सरकार पर बीआरएस की छवि खराब करने का आरोप लग रहा है। मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के एक अनौपचारिक बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि “सही अनुमति” के साथ टैपिंग गैरकानूनी नहीं है, ने भी विवाद को और हवा दी है।
आगे क्या?
फोन टैपिंग कांड ने न केवल तेलंगाना की राजनीति को गरमा दिया है, बल्कि निजता के अधिकार और सरकारी तंत्र के दुरुपयोग जैसे गंभीर मुद्दों को भी उजागर किया है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप और चल रही जांच के बीच, यह देखना बाकी है कि इस मामले में कितने और खुलासे होते हैं और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है।