• 02/10/2022

महात्मा गांधी की जयंती पर हत्यारे गोडसे का महिमामंडन आखिर क्यों…

महात्मा गांधी की जयंती पर हत्यारे गोडसे का महिमामंडन आखिर क्यों…

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आलेख:

2 अक्टूबर, यानी महात्मा गांधी की जयंती. हम गांधी जी को बापू, शांति प्रिय संत, शांति के देवता आदि कई तरह से जानते हैं. 2 अक्टूबर, गांधी जी की जयंती मनाई जाती है, लेकिन वर्तमान परिदृश्य (खास कर 2014 के बाद) से हम देख रहे हैं कि महात्मा गांधी की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाए जा रहे हैं. ऐसे लोगों की विचारधारा कुछ भी हो सकती है, लेकिन महात्मा गांधी ने सिर्फ भारत में नहीं अपितु वैश्विक स्तर पर शांति, प्रेम एवं सत्य का संदेश दिया जो सदैव प्रासंगिक हैं. वे समूची दुनिया के लिए अब भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने जीते जी थे. याद रखना होगा गांधी एक विचारधारा, दर्शन, आईना है जो शाश्वत है, सदैव प्रासंगिक हैं, कभी मरता नहीं और न ही कोई कभी मार सकता है. जो हमेशा के लिए अजर- अमर हैं. जिसे नाथूराम गोडसे जैसे कई अपराधी नहीं मार सकते हैं.

आपको याद होगा 16 सितंबर 2017 को जापान की काओरी कुरिहारा नामक महिला, जिन्होंने साढ़े सात साल भारत में बिताए. यहां पढ़कर, गांधीवादी दर्शन के साथ जुड़ने का प्रयास कर रही हैं. अब वे गांधी के दर्शन और अहिंसा की विचारधारा को अलग- अलग जगह फैला रही हैं. उनका कहना है कि ‘मेरे प्रधानमंत्री शिंजो आबे जब अहमदाबाद में बुलेट ट्रेन परियोजना का शिलान्यास करने और जापानी तकनीक देने भारत गए थे तो, मेरी इच्छा थी कि वो जापानी नागरिकों के लाभ के लिए भारत से बदले में केवल गांधीवादी मूल्य और दर्शन ले आएं.’ यानी बुलेट ट्रेन के बदले में गांधी को भारत से लाएं. उनके इस विचार से महात्मा गांधी की प्रासंगिकता का अंदाजा लगाया जा सकता है.

हालांकि इस बार महात्मा गांधी की जयंती पर सोशल साइट्स पर जो कुछ भी देखा, वह बिलकुल चौंकाने वाला है. दरअसल सुबह- सुबह ट्विटर पर एक वर्ग के लोग नाथूराम गोडसे के महिमामंडन करने में लगे हुए हैं. इतना ही नहीं एक अचंभित और चिंतित कर देने वाला हैशटैग #Godse ट्रेंड हो रहा था. हालांकि यह कोई नई बात नहीं है, ऐसे कुछ खास मौकों पर ऐसे कुछ अलग विचारधारा के लोग ऐसी घटिया करतूत करने से बाज नहीं आते हैं.

चिंता का विषय तो यह है कि इस तरह की शक्तियां या विचारधारा को बढ़ावा देने वाला कौन है? इसको लेकर कई प्रश्न खड़े होते हैं…क्या भारत देश में अपराध करने वाला व्यक्ति देशभक्त हो सकता है.? क्या किसी की हत्या कर देने वाले व्यक्ति की विचारधारा को बढ़ावा देना चाहिए, क्या गोडसे जैसे अपराधी की भारतीय समाज में जय-जयकार होनी चाहिए..? शायद संवैधानिक दृष्टिकोण कभी नहीं…लेकिन देखा जा रहा है कि ऐसी अपराधिक और असामाजिक विचारधारा को आज समाज में फलने- फूलने दिया जा रहा है.

विडंबना देखिए कि ऐसे वक्त में जब पूरी दुनिया आज महात्मा गांधी की जयंती पर गांधी और उनके विचारों को याद कर रही है तो, एक खास किस्म के तत्व गोडसे को जिंदा कर रहे हैं और भगत सिंह की तरह हीरो बनाने में लगे हैं. सवाल खड़ा होता है कि आखिरकार वे कौन लोग हैं जो गांधी की हत्या पर जश्न और गोडसे के जन्मदिवस को शौर्य दिवस मनाते हैं. इसे हम एक विडंबना नहीं तो और क्या कह सकते हैं..? जब गोडसे को एक राष्ट्रवादी बताते फिरते हैं. ये और कोई नहीं है, ये कुछ सांप्रदायिक पार्टियां और कुछ सांप्रदायिक नेता हैं.

नाथूराम गोडसे को हीरो बनाने वाले लोग गोडसे द्वारा की गई गांधी जी की हत्या को सही बताने का प्रयास भी करते रहते हैं और कई प्रकार के प्रमाण भी देते फिरते हैं. उसका कुछ कारण गांधी जी का मुस्लिम समुदाय के प्रति अधिक प्रेम और पाकिस्तान को 55 करोड़ देने के लिए सरकार को बाध्य करने जैसे कई तरह के कारण बताते हैं. जबकि “Why Godse Killed Gandhi” पुस्तक में वी.टी. राजशेखर लिखते हैं कि गाँधी जी की हत्या के बारे मे संघ को पहले से ही मालूम था, जैसे ही हत्या की खबर मिली मिनटों में ही पूरे भारत मे मिठाईयां संघ के द्वारा बांटी गई. जिससे लोग नाराज़ होकर महाराष्ट्र और कर्नाटक में लोगों ने बहुत से ब्राह्मणों के घर में आग लगा दिया था.

गांधी के हत्या पर महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी उन्होंने अपनी पुस्तक “लेट्स किल गाँधी” में लिखा है कि गांधी जी की हत्या पूर्वनियोजित थी और ब्राह्मण का एक समुदाय जो हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता था, उसी ने हत्या करवाया क्यों कि वे गांधी जी को अपने राह मे रोड़ा समझती थी. हालांकि वर्तमान में चिंता का विषय यह है कि गांधी और गोडसे को लेकर जो भ्रांतियां उससे युवा वर्ग बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. जिसका दूरगामी परिणाम बुरा साबित हो सकता है.

आज हम 2 अक्टूबर को गांधी जयंती और 30 जनवरी को ‘गांधी निर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं. आगे यदि ऐसा ही चलता रहा तो गोडसे गौरव दिवस हो जाएगा. 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर राजघाट पर शायद कोई नहीं जाएगा और धीरे- धीरे झूठ के पुलिंदे इतने सशक्त हो जाएंगे कि सत्य उनमें जाकर छिप जाएगा. हम वास्तविकता और इतिहास से दूर हो जाएंगे. अच्छे विचारों का अंत हो जाएगा. ऐसे में सभी युवा वर्ग को किसी के बहकावे या सोशल साइट्स की अफवाहों पर ध्यान न देकर इतिहास को पढ़ना और दोहराना चाहिए. ताकि समाज में एक सही संदेश प्रेषित हो सके, अन्यथा हम सभी एक भयावह परिणाम के लिए तैयार रहे.

(राजकुमार पाण्डेय एक पत्रकार और विचारक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.