- 18/07/2025
छत्तीसगढ़ शराब घोटाला: पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा की जमानत याचिका हाईकोर्ट ने की खारिज, ED और EOW की जांच में 2,161 करोड़ के घोटाले का खुलासा

छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित शराब घोटाला मामले में पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा को बिलासपुर हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। जस्टिस अरविंद वर्मा की बेंच ने लखमा की जमानत याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कोर्ट ने मामले की गंभीरता का हवाला देते हुए कहा कि जमानत नहीं दी जा सकती। लखमा को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 15 जनवरी 2025 को गिरफ्तार किया था, और आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) ने भी इस मामले में उनकी गिरफ्तारी की थी।
जमानत याचिका पर सुनवाई और दलीलें
शुक्रवार को बिलासपुर हाईकोर्ट में EOW की गिरफ्तारी से संबंधित जमानत याचिका पर सुनवाई हुई। लखमा के वकील हर्षवर्धन ने तर्क दिया कि 2024 में दर्ज मामले में डेढ़ साल बाद गिरफ्तारी की गई, जो गलत है। उन्होंने दावा किया कि लखमा का पक्ष सुने बिना उन्हें केवल बयानों के आधार पर आरोपी बनाया गया और उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं हैं। वकील ने यह भी कहा कि लखमा को राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया गया है।
वहीं, EOW की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता विवेक शर्मा ने कोर्ट को बताया कि चार्जशीट में लखमा की अहम भूमिका सामने आई है। जांच में पाया गया कि उनके बंगले में हर महीने 2 करोड़ रुपये कमीशन पहुंचता था। EOW ने लखमा के 27 करीबियों के बयानों के आधार पर सबूत जुटाए हैं, जो उनकी मिलीभगत और घोटाले में भूमिका को साबित करते हैं।
क्या है शराब घोटाला कैसे दिया गया अंजाम
ED और EOW की जांच के अनुसार, यह शराब घोटाला 2019 से 2022 के बीच तत्कालीन भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल में हुआ। जांच में सामने आया कि एक संगठित सिंडिकेट, जिसमें पूर्व IAS अनिल टुटेजा, आबकारी विभाग के तत्कालीन प्रबंध निदेशक अरुणपति त्रिपाठी, और कारोबारी अनवर ढेबर शामिल थे, ने 2,161 करोड़ रुपये की अवैध कमाई की। EOW की हालिया चार्जशीट में इस राशि को बढ़ाकर 3,200 करोड़ रुपये बताया गया है।
ED ने अपनी चार्जशीट में दावा किया कि 2017 में आबकारी नीति में संशोधन कर छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (CSMCL) के जरिए शराब बिक्री शुरू की गई। 2019 में अनवर ढेबर ने अरुणपति त्रिपाठी को CSMCL का MD नियुक्त कराया, जिसके बाद अधिकारियों, कारोबारियों और राजनीतिक रसूख वालों के सिंडिकेट ने भ्रष्टाचार को अंजाम दिया।
इस घोटाले में निम्नलिखित तरीकों से अवैध कमाई की गई:
- कमीशन के जरिए रिश्वत: डिस्टिलर्स से प्रति केस कमीशन लिया जाता था, जिसे अनवर ढेबर इकट्ठा करता था और इसका बड़ा हिस्सा राजनीतिक नेताओं और अधिकारियों के बीच बांटा जाता था।
- बिना रिकॉर्ड बिक्री: सरकारी दुकानों से डुप्लीकेट होलोग्राम के साथ अवैध शराब बेची गई, जिससे सरकार को राजस्व का भारी नुकसान हुआ।
कार्टेल गठन: चुनिंदा डिस्टिलर्स को फिक्स मार्केट शेयर दिए गए। - FL-10A लाइसेंस: विदेशी शराब के कारोबार में एंट्री के लिए मोटी रकम वसूली गई।
EOW की चार्जशीट में दावा किया गया कि लखमा को 64 करोड़ रुपये का कमीशन मिला, जिसमें से 18 करोड़ रुपये के अवैध निवेश और खर्च के दस्तावेजी सबूत मिले हैं। ED ने यह भी कहा कि लखमा को हर महीने 2 करोड़ रुपये मिलते थे, जो उनके बेटे हरीश कवासी के घर और सुकमा में कांग्रेस भवन के निर्माण में इस्तेमाल हुए।
### **अन्य आरोपियों की स्थिति**
अनिल टुटेजा: पूर्व IAS अधिकारी अनिल टुटेजा को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली है, लेकिन EOW की जांच के कारण वे अभी जेल में हैं। उनकी जमानत याचिका को हाईकोर्ट ने 27 जून 2025 को खारिज कर दिया था।
अनवर ढेबर: सुप्रीम कोर्ट ने ढेबर को ED मामले में जमानत दी, लेकिन EOW मामले में जमानत खारिज होने के कारण वे जेल में हैं। ED ने उन्हें घोटाले का मास्टरमाइंड बताया है।
अरुणपति त्रिपाठी: त्रिपाठी को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली है, लेकिन EOW और झारखंड ACB की जांच के कारण उनकी मुश्किलें बनी हुई हैं।