• 24/07/2025

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: हिरासत में मौत को गैरइरादतन हत्या माना, चार पुलिसकर्मियों की उम्रकैद 10 साल के कठोर कारावास में बदली

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: हिरासत में मौत को गैरइरादतन हत्या माना, चार पुलिसकर्मियों की उम्रकैद 10 साल के कठोर कारावास में बदली

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जांजगीर-चांपा जिले के मुलमुला थाने में 2016 में हुई हिरासत में मौत के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। डिवीजन बेंच के जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी ने कहा कि हिरासत में मौत न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह लोकतंत्र और मानव अधिकारों पर गंभीर आघात है। कोर्ट ने टिप्पणी की, “जब रक्षक ही भक्षक बन जाए, तो यह समाज के लिए गंभीर खतरा है।” इस टिप्पणी के साथ, कोर्ट ने दोषी थाना प्रभारी जितेंद्र सिंह राजपूत और तीन अन्य पुलिसकर्मियों की आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 10 साल के कठोर कारावास में बदल दिया।

मामला: मुलमुला थाने में हिरासत में मौत

2016 में जांजगीर-चांपा जिले के नरियरा गांव के सतीश नोरगे को शराब पीकर हंगामा करने के आरोप में मुलमुला थाना पुलिस ने हिरासत में लिया था। हिरासत में कुछ घंटों बाद ही सतीश की मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उनके शरीर पर 26 जगह चोट के निशान पाए गए, जिसके बाद स्थानीय लोगों ने जमकर विरोध-प्रदर्शन किया और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। जन दबाव के बाद पुलिस ने थाना प्रभारी जितेंद्र सिंह राजपूत, कांस्टेबल सुनील ध्रुव, दिलहरण मिरी और सैनिक राजेश कुमार के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया।

स्पेशल कोर्ट का फैसला

पुलिस ने चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और कोर्ट में चार्जशीट पेश की। 2019 में स्पेशल कोर्ट (एट्रोसिटी) ने सभी आरोपियों को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसके खिलाफ चारों पुलिसकर्मियों ने हाईकोर्ट में अपील दायर की, जबकि मृतक की पत्नी ने सजा को और सख्त करने की मांग के साथ हस्तक्षेप आवेदन दायर किया।

हाईकोर्ट का फैसला: गैरइरादतन हत्या माना

हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद पाया कि आरोपियों की हत्या की मंशा स्पष्ट नहीं थी, लेकिन वे जानते थे कि उनकी पिटाई से गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इस आधार पर कोर्ट ने हत्या की धारा 302 के बजाय धारा 304 भाग-1 (गैरइरादतन हत्या) के तहत अपराध माना और सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 10 साल के कठोर कारावास में बदल दिया।

कोर्ट ने यह भी पाया कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि पुलिसकर्मियों को मृतक के अनुसूचित जाति से होने की जानकारी थी। इसलिए, थाना प्रभारी को एससी-एसटी एक्ट की धाराओं से बरी कर दिया गया।

अब क्या होगा?

हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार, चारों दोषी पुलिसकर्मी, जो 2016 से जेल में बंद हैं, अब 10 साल की सजा के आधार पर बची हुई अवधि जेल में काटेंगे। डिवीजन बेंच ने फैसले की प्रति जेल अधीक्षक को भेजने का निर्देश दिया है, ताकि सजा की गिनती और आगे की कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके।