• 11/04/2024

कभी एक सीट पर 2 सांसद लड़ते थे चुनाव, जानिए लोकसभा चुनाव से जुड़ा अजब-गजब इतिहास…

कभी एक सीट पर 2 सांसद लड़ते थे चुनाव, जानिए लोकसभा चुनाव से जुड़ा अजब-गजब इतिहास…

देश में लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्योहार यानी लोकसभा का चुनाव हो रहा है। नियम के मुताबिक एक लोकसभा सीट पर केवल एक सांसद होता है। जो वहां की जनता का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन आज हम आपको जिस लोकसभा क्षेत्र के बारे में बताने जा रहे हैं, वहां कभी एक नहीं बल्कि दो सांसदों का चुनाव होता था।सुनने में आपको अजीब लग रहा होगा, लेकिन यही सच है।  

सांसदों वाली सरगुजा सीट

हम बात कर रहे हैं देश की आजादी के बाद 1951 में अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा बनीं सरगुजा लोकसभा सीट की। 1951 से लेकर 2019 तक सरगुजा में 17 चुनाव हो चुके हैं। इस बार 18वीं लोकसभा के लिए दिग्गज आमने सामने हैं, लेकिन आजादी के बाद इस लोकसभा सीट का इतिहास काफी अनोखा था।

यहां 1952 और 1957 के चुनाव में एक से ज्यादा सांसद चुने गए थे, जिन्हें दिल्ली दरबार में जनता की आवाज उठाने का मौका मिला था। इसमें से एक सांसद सामान्य वर्ग का और दूसरा आरक्षित वर्ग से था, लेकिन साल 1962 के चुनाव में ये व्यवस्था खत्म कर दी गई।

सीट एक…दो सांसद वाली पार्टी

  • 1951 में अस्तित्व में आई सरगुजा सीट
  • पहले 2 चुनाव में दो सांसद चुने गए
  • पहले सांसद महाराजा चंडिकेश्वर शरण सिंह जूदेव थे
  • बाबूनाथ सिंह दूसरे सांसद चुने गए
  • महाराजा चंडिकेश्वर शरण सिंह जूदेव निर्दलीय जीते
  • बाबूनाथ सिंह कांग्रेस की टिकट पर निवार्चित हुए थे
  • 1957 में दोनों ने कांग्रेस प्रत्‍याशी के रुप में चुनाव लड़ा
  • इस सीट से बाबूनाथ सिंह लगातार पांच बार सांसद बने

एक सीट पर 2 सांसद चुनने की वजह ?

आजादी के बाद पहले दो चुनावों में देश की हर पांच संसदीय सीटों में से एक में से दो सांसदों को चुनना होता था। 1951-52 में भारत का पहला आम चुनाव 26 राज्यों में हुआ। 400 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए चुनाव हुए, इसमें से 314 निर्वाचन क्षेत्रों में एक सांसद चुना गया। जबकि 86 लोकसभा सीटों में सामान्य और आरक्षित वर्ग के सांसद चुने गए। ये बहुसीट निर्वाचन क्षेत्र वंचित वर्गों, दलितों और आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित किए गए थे।

ऐसी व्यवस्था किसी भी बड़े लोकतंत्र में राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए पहली थी। 1957 तक ये सिलसिला चला, लेकिन 1962 में परिसीमन के बाद सीटों का आरक्षण हुआ। इसके साथ ही दो सांसद चुनने की परंपरा खत्म हो गई।