- 02/10/2022
पेसा के नए प्रावधान और वन संरक्षण अधिनियम से बवाल, कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ राजधानी में आदिवासियों का हल्ला बोल
छत्तीसगढ़ में कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ राजधानी में रविवार को आदिवासियों ने हल्ला बोला। मोदी सरकार के नए वन संरक्षण अधिनियम-2022 और छत्तीसगढ़ पेसा कानून के नए प्रावधानों के विरोध में आदिवासियों ने ग्राम स्वराज रैली निकाली। बस्तर-सरगुजा के अलावा प्रदेश के विभिन्न जिलों से आदिवासी रविवार को राजधानी रायपुर पहुंचे। रैली में पहुंचे आदिवासियों ने पेसा अधिसूचित क्षेत्रों में पंचायतों का विस्तार नियम रद्द करने के साथ ही केन्द्र सरकार द्वारा जारी वन संरक्षण अधिनियम 2022 की अधिसूचना को भी रद्द करने की मांग की है। इसे लेकर राष्ट्रपति, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नाम पर ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन में आदिवासियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में 32 प्रतिशत लागू करने की भी मांग की गई है।
प्रदेश भर से इकट्ठा हुए आदिवासियों ने गोंडवाना भवन से लेकर आजाद चौक तक पैदल ‘ग्राम-स्वराज रैली’ निकाली। यहां उन्होंने गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और सभा की। इस दौरान आदिवासी नेता राज्य की कांग्रेस पर जमकर बरसे। नेताओं ने सरकार पर आरोप लगाया कि जानबूझकर पेसा नियम में ग्राम सभा को कमजोर किया गया है। सरकार आदिवासी क्षेत्रों में मनमानी करने पर उतारू हो गई है।
सभा के दौरान बस्तर के मामले भी उछले। आदिवासी नेताओं ने सिलगेर का मामला उठाते हुए कहा कि डेढ़ साल से वहां आंदोलन चल रहा है। लेकिन सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। पुलिस फायरिंग में हुई मौत को लेकर जांच की बात कही गई थी लेकिन रिपोर्ट को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया।
हसदेव में कटाई का विरोध
हसदेव अरण्य में चल रही पेड़ों की कटाई को लेकर भी आदिवासियों ने नाराजगी दिखाई। कटाई का विरोध करते हुए नेताओं ने राज्य सरकार पर धोखा देने का आरोप लगाया है। नेताओं ने कहा कि पहले हमको कहा गया कि बगैर हमारी सहमति के कोई खदान नहीं खुलेगी। ग्राम सभाओं ने प्रस्ताव पारित कर खदानों का विरोध किया है। स्थानीय ग्रामीण लगातार धरने पर बैठे हैं। विरोध कर रहे लोगों को गिरफ्तार कर जंगल की कटाई शुरु करवा दी गई।
किसलिए हो रहा वन संरक्षण अधिनियम का विरोध
आपको बता दें मोदी सरकार के वन संरक्षण अधिनियम 2022 के तहत बगैर ग्राम सभा के ही 1000 हेक्टेयर तक के जंगलों को गैर-वन उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा सकता है। यानि की उद्योगों की स्थापना के लिए ग्राम सभा की अनुमति नहीं लेनी होगी। इसके पहले के वन कानून में ग्राम सभाओं का अनुमोदन आवश्यक था।
पेसा कानून के नए प्रावधान पर ये है आपत्ति
नए पेसा कानून को लेकर आदिवासियों की आपत्ति इसलिए है कि इसमें भूमि-अधिग्रहण की प्रक्रिया में ग्राम सभा की भूमिका को नगण्य बना दिया गया है। नए प्रावधान के तहत भूमि-अधिग्रहण की प्रक्रिया में ग्राम सभा से ‘परामर्श’ लिया जाना है। जबकि इसके पहले 2013 में आए भूमि अधिग्रहण, पुनर्स्थापन और पुनर्वास कानून में भी पाँचवीं अनुसूची क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण से पहले समुदायों की ‘सहमति’ का स्पष्ट प्रावधान था। इसके अलावा अगर किसी को भूमि अधिग्रहण या भूमि-डायवर्जन को लेकर ग्राम सभा के प्रस्ताव से आपत्ति है तो वह जिला कलेक्टर से इसकी शिकायत कर सकता है। तीसरी आपत्ति इन नियमों में ग्राम पंचायत के सचिव को ग्राम सभा का भी सचिव नियुक्त किए जाने को लेकर है।
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