- 17/04/2025
‘Article 142 सरकार के खिलाफ न्यूक्लियर मिसाइल बन गया’; उपराष्ट्रपति धनखड़ का सुप्रीम कोर्ट पर तीखा हमला


उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए संविधान के अनुच्छेद 142 को “लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ न्यूक्लियर मिसाइल” करार दिया। यह टिप्पणी तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में 8 अप्रैल 2025 को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश पर आई, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को राज्य विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा तय की गई थी। धनखड़ ने इसे न्यायिक अतिक्रमण का उदाहरण बताते हुए चेतावनी दी कि न्यायपालिका “सुपर संसद” की भूमिका निभा रही है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या था?
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला दिया कि राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है, और उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है। यह आदेश 11 अप्रैल को कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया। कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल की लंबे समय तक विधेयकों को रोकने की कार्रवाई को असंवैधानिक करार दिया।
धनखड़ की आपत्ति
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने गुरुवार को उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में राज्यसभा इंटर्न्स के छठे बैच को संबोधित करते हुए इस फैसले पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। राष्ट्रपति संविधान की रक्षा और संवर्धन की शपथ लेते हैं। क्या यह संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन नहीं है?” उन्होंने अनुच्छेद 142 की आलोचना करते हुए कहा कि यह प्रावधान, जो सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय के लिए विशेष अधिकार देता है, अब “24×7 लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ परमाणु हथियार” बन गया है।
धनखड़ ने अनुच्छेद 145(3) का हवाला देते हुए कहा कि न्यायपालिका का काम केवल संविधान की व्याख्या करना है, और वह भी पांच या अधिक जजों की पीठ द्वारा। उन्होंने सवाल उठाया, “जिन जजों ने राष्ट्रपति को लगभग मैंडमस जारी किया, क्या वे संविधान की मर्यादा को भूल गए?”
न्यायिक पारदर्शिता पर भी सवाल
धनखड़ ने दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के आवास से 14-15 मार्च को कथित तौर पर जले हुए नोटों की बरामदगी का जिक्र करते हुए न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता की कमी पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “सात दिन तक इस घटना की जानकारी छिपाई गई। क्या यह स्वीकार्य है? संविधान केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल को प्रतिरक्षा देता है, फिर जजों को यह विशेष छूट कैसे?” उन्होंने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज न होने पर भी नाराजगी जताई।
1975 की इमरजेंसी का जिक्र
उपराष्ट्रपति ने 1975 की इमरजेंसी का हवाला देते हुए कहा, “बेसिक स्ट्रक्चर सिद्धांत की दुहाई देने वाले यह भूल गए कि इमरजेंसी के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मौलिक अधिकार निलंबित किए जा सकते हैं। क्या वह संविधान की रक्षा थी?” उन्होंने न्यायपालिका से संवैधानिक सीमाओं का पालन करने की अपील की।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला- कांग्रेस
बीजेपी नेताओं ने धनखड़ की टिप्पणी का समर्थन करते हुए इसे न्यायिक जवाबदेही की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया। वहीं, विपक्षी दलों ने इसे कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव का प्रयास करार दिया। कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, “उपराष्ट्रपति का यह बयान न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला है।” तृणमूल कांग्रेस ने भी धनखड़ की टिप्पणी को “असंवैधानिक” बताया।
क्या है अनुच्छेद 142 में?
अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष अधिकार देता है। इसके तहत कोर्ट ऐसे आदेश जारी कर सकता है, जो संवैधानिक दायरे में हों, भले ही कोई स्पष्ट कानून न हो। इसका उपयोग अयोध्या मामले, भोपाल गैस त्रासदी और हाल के बुलडोजर कार्रवाई पर रोक जैसे मामलों में किया गया है। हालांकि, इसकी आलोचना भी होती रही है कि यह न्यायपालिका को असीमित शक्ति देता है।