- 17/12/2022
संसार में यदि सुख चाहिए तो कथा रूपी समंदर में डूब जाओ: चिन्मयानंद बापू; – नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल भी हुए शामिल
भिलाई। श्रीराम जन्मोत्सव समिति एवं जीवन आनंद फाउण्डेशन के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित श्रीराम ज्ञान यज्ञ एवं श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के आज तीसरे दिन श्रीराम जन्मोत्सव का प्रसंग प्रस्तुत कया गया। जहां कथावाचक राष्ट्रीय संत श्री चिन्मयानंद बापू ने श्रद्धालुओं को कथा का रसपान कराते हुए कहा कि संसार में यदि सुख चाहिए तो कथा रूपी समंदर में डूब जाओ। उन्होंने कहा कि केवल 3 घंटे की यह कथा सुनने मात्र से जिंदगी संवर जाती है। कथा में आज अतिथि के रूप में छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना की, साथ ही कथावाचक चिन्मयानंद महाराज का भी आशीर्वाद प्राप्त किया।
कथा वाचक चिन्मयानंद बापू ने कहा कि शराबी तो रोज ही प्याला पीता है लेकिन वह तो एक रात में उतर जाती है। लेकिन जो व्यक्ति कथा रूपी प्याले को पीता है उसके जीवन की नैय्या पार लग जाती है। उन्होंने कहा कि श्रोता का मन समंदर जैसा होना चाहिए जो कभी भी नहीं भरना चाहिए। जिस तरह समंदर में कितनी ही नदियां समाहित हो जाएं लेकिन वह भरता नहीं, उसी प्रकार श्रोता को भी खुले मन से कथा का श्रवण करना चाहिए।
श्रीराम कथा से जुडऩा सुखी होने का एकमात्र तरीका
चिन्मयानंद बापू ने कहा कि श्रीराम के साथ जुड़ जाना ही सुखी होने का एक मात्र तरीका है । भगवान के साथ जुड़ाव आपको सुख नहीं, अपवाद की अनुभूति कराता है । उन्होंने कहा कि भगवान की उपस्थिति का अहसास, चिंतन, सुमिरन हमारे शरीर के छिद्र कोषों में आनंद को खिला देता है । उन्होंने कहा कि एक राम का नाम ही है, जो बिखरे, टूटे और कटे भारत को एक कर सकता है । उन्होंने कहा कि जब इंसान अकेले सुख भोगता है तो उसे आनंद कहते है, लेकिन जब उस सुख में सभी भागीदार होते है तो वह महोत्सव बन जाता है ।
श्रीराम नाम से अमंगल भी हो जाता है मंगल
चिन्मयानंद बापू ने कहा कि प्रभु श्रीराम का नाम सुनने मात्र से अमंगल से बदलकर मंगल हो जाता है । उन्होंने श्रीराम जन्म से अयोध्यावासियों में उमडी खुशी का बड़े ही सुंदर शब्दों में बखान करते हुए कहा कि चंद्रमा ने जब भगवान से शिकायत के कि उसे प्रभु-दर्शन का सौभाग्य नहीं मिल रहा है तो भगवान ने चंद्र शब्द अपने नाम का आधार अर्थात ‘रामचंद्र’ दिया । श्रद्धालु-श्रोताओं को श्रीराम कथा की यात्रा कराते हूए चिन्मयानंद बापू ने महामुनि विश्वमित्र द्वारा मारीच-ताड़का जैसे राक्षसों के बध के लिए राजा दशरथ से श्रीराम और लक्ष्मण को मांगने वाले प्रसंग से गुजरते हूए अहिल्या-उद्धार की कथा का बड़े ही मार्मिक ढंग से वर्णन किया ।
श्रीराम जन्मोत्सव का किया बखान
राम जन्मोत्सव की कथा को आगे बढ़ाते हुए चिन्मयानंद बापू ने कहा कि तुलसीदास ने रामचरितमानस को राम के राज्याभिषेक के बाद समाप्त कर दिया है। वहीं आदिकवि वाल्मीकि ने अपने रामायण में कथा को आगे श्रीराम के महाप्रयाण तक वर्णित किया है। कथा में संगीत के माध्यम से रामायण की चौपाइयों और भजनों का भक्तों ने आनंद लिया। चिन्मयानंद बापू ने बताया कि महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने की ठानी। महाराज की आज्ञानुसार श्याम कर्ण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वा दिया गया। महाराज दशरथ ने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकांड पण्डितों को यज्ञ सम्पन्न कराने के लिये बुलावा भेज दिया। निश्चित समय आने पर समस्त अभ्यागतों के साथ महाराज दशरथ अपने गुरु वशिष्ठ तथा अपने परम मित्र अंग देश के अधिपति लोभपाद के जामाता ऋंग ऋषि को लेकर यज्ञ मंडप में पधारे। इस प्रकार महान यज्ञ का विधिवत शुभारंभ किया गया। संपूर्ण वातावरण वेदों की ऋचाओं के उच्च स्वर में पाठ से गूंजने तथा समिधा की सुगंध से महकने लगा। समस्त पंडितों, ब्राह्मणों, ऋषियों आदि को यथोचित धन-धान्य, गो आदि भेंटकर सादर विदा करने के साथ यज्ञ की समाप्ति हुई। राजा दशरथ ने यज्ञ के प्रसाद खीर को महल में ले जाकर अपनी तीनों रानियों में वितरित कर दिया। प्रसाद ग्रहण करने के परिणामस्वरूप तीनों रानियों ने गर्भधारण किया। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महाराज की बड़ी रानी कौशल्या ने एक शिशु को जन्म दिया। इसके पश्चात महारानी कैकेयी के एक तथा तीसरी रानी सुमित्रा के दो तेजस्वी पुत्रों का जन्म हुआ। चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार महर्षि वशिष्ठ ने किया। राजकुमारों के नाम रामचंद्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखे गए। आयोजन के चौथे दिन श्रीराम बाल चरित्र का प्रसंग सुनाया जाएगा।