• 05/04/2023

ग्रामीण इलाकों में सामाजिक बहिष्कार का डर बना महिलाओं के लिए खतरा, अलग-थलग पड़ने के डर से टीबी की जांच नहीं करा रही हैं महिलाएं

ग्रामीण इलाकों में सामाजिक बहिष्कार का डर बना महिलाओं के लिए खतरा, अलग-थलग पड़ने के डर से टीबी की जांच नहीं करा रही हैं महिलाएं

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रजनी ठाकुर, रायपुर। बलौदाबाजार की रहने वाली 42 साल की परमेश्वरी  साहू( बदला हुआ नाम) बीते 2 महिनों से खांसी ,बुखार और कमजोरी को नजरअंदाज कर रही थीं, तबियत ज्यादा खराब होने पर डॉक्टर के पास ले जाया गया, जांच के बाद पता चला कि टीबी है, कुछ ऐसा ही मामला रायपुर जिले से लगे तिल्दा का है. जहां 34 साल की साधना साहु(बदला हुआ नाम) को टीबी होने के चार महिने बाद टीबी का पता चला, और इलाज देर से शुरु होने पर स्थिति गंभीर होती चली गई. दोनों ही मामलों में टीबी के देर से पता चलने का कारण था ,जांच में देरी और जांच में देरी का कारण था महिलाओं में सामाजिक बहिष्कार का डर. परमेश्वरी और साधना जैसे कई मामले ग्रामीण इलाकों में देखे जा रहे है, जहां टीबी के लक्षण समझ आने पर भी महिलाएं टीबी की जांच कराने से घबरा रही हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है सामाजिक बहिष्कार का डर. कस्बों और खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में महिलाएं इस डर में रहती हैं कि अगर कोई बीमारी होती है तो उनके साथ अलग  बर्ताव किया जाएगा. टीबी को लेकर भी यही डर जानलेवा साबित हो रहा है. बलौदाबाजार, भाटापारा ,तिल्दा ,दुर्गजैसे कई इलाके हैं, जहां टीबी को लेकर काम कर रहे वालेंटियर्स को ऐसी परिस्थतियों का कई बार सामना करना पड़ता है. तिल्दा से टीबी वॉलेंटियर संगीता बताती हैं कि महिलाओं में टीबी की जांच को लेकर एक डर है, और ये डर बीमारी से ज्यादा सामाजिक बहिष्कार का, समाज से अलग-थलग कर दिये जाने का है. यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों में जब तक टीबी की पहचान हो पाती है. तब तक काफी समय बीत चुका होता है.

ग्रामीण इलाकों में ज्यादा से ज्यादा महिला वॉलेंटियर्स की जरुरत

महिलाओं में टीबी जांच को लेकर जागरुकता लाने और डर को खत्म करने के लिए जरुरी है कि ज्यादा से ज्यादा महिला वॉलेंटियर्स की मदद ली जाए. ग्रामीण इलाकों में महिलाएं अब भी अपने स्वास्थय को लेकर खुलकर बात नहीं कर पाती हैं. ऐसे में महिला वालेंटियर्स के जरिए टीबी को लेकर महिलाओं को जागरुक किया जा सकता है. हालाकि वर्तमान में भी जो अभियान चलाया जा रहा है, उसमें मितानिन और टीबी वॉलेंटियर्स मिलकर टीबी की जांच से लेकर इलाज तक के लिए लोगों को जागरुक कर रहे हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में महिला स्वास्थय कर्मी और वॉलेंटियर की संख्या बढाए जाने की जरुरत है.

समय रहते इलाज ना मिलने पर बांझपन का कारण भी बन सकता है टीबी

महिलाओं में जननांग टीबी एक बड़ी बीमारी है. जो माहवारी में अनियमितता और बांझपन का कारण बनता है, गंभीर बात ये है कि ये टीबी बिना किसी लक्षण के भी पैदा हो जाता है, जिसका पता काफी समय के बाद चलता है,ऐसे में ये और जरुरी हो जाता है कि समय समय पर महिलाओं में टीबी की स्क्रीनिंग की जाए. यह माइको बैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक संक्रमित जीवाणुओं के शरीर में प्रवेश होने के कारण होता है, जो कई दुसरी बीमारियों का भी कारण बनता है जिसमें कुष्ठ जैसी बीमारियां भी शामिल हैं. वैसे तो यह मुख्य रूप से हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है. सामान्य तौर पर टीबी स्त्रियों के जननांग अंग, जैसे- अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब, गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा और योनि या श्रोणि में आसपास के लिम्फ नोड्स को प्रभावित करता है. साथ ही ये कीडनी, मुत्राशय और मूत्रमार्ग को प्रभावित कर सकता है.यह रोग मुख्यत: महिलाओं को प्रसव अवधि के दौरान प्रभावित करता है और संयोगवश अक्सर बांझपन का कारण बन जाता है, क्योंकि बैक्टीरिया जननांग पर हमला करते हैं. इसे पेल्विक टीबी के रूप में भी जाना जाता है. आमतौर पर बांझपन के इलाज के दौरान ही इसका पता चल पाता है. फेफड़ों में संक्रमण होते ही इस रोग का पता लगाना शुरुआत में आसान है, लेकिन अगर बैक्टीरिया सीधे जननांग अंगों पर हमला करते हैं, तो बाद के स्टेज में इसका पता लगाना मुश्किल होता है. टीबी से फैलोपियन ट्यूब को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचता है. प्रारंभिक अवस्था में इलाज नहीं हो, तो आगे स्थिति गंभीर हो सकती है. किसी भी प्रकार की टीबी से ग्रस्त 30% महिलाओं में जननांग टीबी विकसित हो सकती है. 5-10% में हाइड्रो सल्पिंगिटिस होता है, जिसमें पानी ट्यूब में भर जाता है. इसके परिणामस्वरूप बांझपन होता है. टीबी बैक्टीरिया मुख्य रूप से फैलोपियन ट्यूब को बंद करता है, जिससे अत्याधिक दर्द होता है. असामयिक माहवारी और बांझपन होता है. कुछ मामलों में पीरियड्स रुक सकते हैं, क्योंकि गर्भाशय की परत गहरे प्रभावित हो जाती है. समय पर उपचार हो जाये, तो गर्भधारण में समस्या नहीं आती. इसका पता लगाने के लिए कोई विशिष्ट जांच नहीं. एंडोमेट्रियल बायोप्सी और लैप्रोस्कोपी का उपयोग यह जांचने के लिए किया जाता है कि फैलोपियन ट्यूब प्रभावित है या नहीं. टीबी जांच या ब्लड टेस्ट जैसे अन्य टेस्ट टीबी का पता लगाने के लिए किये जाते हैं.

राज्य में तेज हुआ स्क्रीनिंग अभियान

क्षय रोगी खोजी अभियान में यह भी जा रहा है कि अगर उनके यहां कोई क्षय रोग से संबंधित किसी का इलाज चल रहा है तो उनको क्षय रोग कार्यालय में पंजीकृत कराएं। ताकि उन्हें बेहतर दवाए निश्शुल्क मिलें और उनका इलाज करने के साथ ही उन्हें पोषण भत्ता दिलाया जा सके। विभाग के मुताबिक सघन टीबी रोग खोज अभियान में विभाग ने 14 टीम 3 हिस्सा लिया। प्रत्येक टीम में चार सपांच सदस्य थे । टीबी सुपरवाइजर, मालिन, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, स्वास्थ्य स्थानीय एनजीओ कार्यकर्ताओं विशेष सहयोग दिया। टीबी जांच को लेकर प्रदेश के साथ ही जिला स्तर पर वृहद अभियान शुरू कर दिया गया है। जहां केंद्र सरकार ने 2025 तक टीबी बीमारी को पूरी तरह से खत्म करने का लक्ष्य रखा है। राज्य सरकार द्वारा 2023 को लक्ष्य बनाकर टीबी उन्मूलन का अभियान शुरू किया गया है। इसमें जिले के ग्रामीण और शहरी बस्तियों में अभियान के तहत के 26,589 लोगों की स्क्रीनिंग की गई है और आगे भी अभियान जारी है।