• 23/01/2024

‘जाइए जेल का मजा लीजिए’, पुलिस कर्मियों पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, ये है मामला

‘जाइए जेल का मजा लीजिए’, पुलिस कर्मियों पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, ये है मामला

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गुजरात के खेड़ा में साल 2022 में पुलिस कर्मियों द्वारा 5 लोगों की सार्वजनिक रुप से पिटाई करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिस को जमकर फटकार लगाई है। सुनवाई के दौरान नाराज कोर्ट ने कहा कि हमें ये बताएं कि लोगों को खंभे में बांधकर डंडे से पीटने का अधिकार आपको किसने दिया।

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस बीआर गवई की बेंच इस मामले में चार पुलिस कर्मियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इंस्पेक्टर एवी परमार, सब इंस्पेक्टर डीबी कुमावत, हेड कांस्टेबल केएल ढाबी और कान्स्टेबल आरआर डाबी गुजरात हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को चुनौती दी है। गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले में पुलिस कर्मियों को 14 दिन की साधारण कारावास की सजा सुनाई है।

मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि क्या आपके पास खंभे से बांधने और पीटने का अधिकार है। जाईये और अब जेल का मजा लीजिए। जस्टिस मेहता ने इस दौरान पुलिस अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि ये कैसा अत्याचार है, पुलिस कर्मी ही लोगों को खंभे में बांधकर सार्वजनिक रूप से पीट रही हैं। यहां तक कि घटना का वीडियो भी बना रहे हैं। ऐसे कृत्य के बाद आप चाहते हैं कि मामले में कोर्ट हस्तक्षेप करे।

मामले में पुलिस कर्मियों की ओर से मौजूद वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा कि आरोपी पुलिस कर्मी पहले से ही आपराधिक मुकदमा, विभागीय कार्यवाही और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की जांच का सामना कर रहे हैं। अभी सवाल इन अधिकारियों के दोषी होने के बारे में नहीं है बल्कि उच्च न्यायालय के अवमानना क्षेत्राधिकार के बारे में है।

कानून की जानकारी नहीं होना वैध बचाव नहीं

मामले में न्यायमूर्ति गवई ने पलटवार करते हुए कहा कि कानून की जानकारी न होना वैध बचाव नहीं है। प्रत्येक पुलिस अधिकारी को यह जानना चाहिए कि डीके बसु मामले में क्या कानून निर्धारित किया गया है। कानून के छात्रों के तौर पर हम डीके बसु फैसले के बारे में सुनते और पढ़ते हैं। सुनवाई के दौरान वकील देव ने कहा कि आरोपी पुलिस कर्मियों पर हाईकोर्ट के अवमानना क्षेत्राधिकार के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।