• 12/09/2022

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को आज देंगे भू-समाधि, जानिए अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को आज देंगे भू-समाधि, जानिए अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया

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ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में भक्त नरसिंहपुर पहुंच रहे हैं. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के पार्थिव शरीर का आज मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर स्थित आश्रम में शाम चार बजे अंतिम संस्कार किया जाएगा. उन्हें आश्रम में समाधि दिलवाई जाएगी. आज दोपहर 1 बजे तक अंतिम दर्शन होंगे.

दरअसल, स्वरूपानंद सरस्वती का 98 वर्ष की आयु में रविवार को ब्रह्मलीन हो गए. उन्होंने झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में दोपहर करीब साढ़े 3 बजे अंतिम सांस ली. शंकराचार्य के निधन से पूरे देश में शोक की लहर है. पीएम नरेंद्र मोदी समेत देश की कई बड़ी हस्तियों ने शंकराचार्य के निधन पर शोक व्यक्त किया है.

द्वारका और ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य के अब अंतिम संस्कार की तैयारियां उनके पर ही होगी. अंतिम संस्कार उनके इसी आश्रम में होगा. चूंकि वह शीर्ष साधु-संत थे, लिहाजा हिंदू परंपरा के अनुसार उन्हें भू समाधि दी जाएगी. संत परम्परा में अंतिम संस्कार उनके सम्प्रदाय के अनुसार ही तय होता है. वैष्णव संतों को ज्यादातर अग्नि संस्कार दिया जाता है, लेकिन सन्यासी परंपरा के संतों के लिए तीन संस्कार बताए गए हैं. इन तीन अंतिम संस्कारों में वैदिक तरीके से दाह संस्कार तो है ही इसके अलावा जल समाधि और भू-समाधि भी है. कई बार संन्यासी की अंतिम इच्छा के अनुसार उनकी देह को जंगलों में छोड़ दिया जाता है.

1 बजे तक होंगे अंतिम दर्शन

बताया जा रहा है कि समाधि देने की पूरी तैयारी हो चुकी है. अंतिम दर्शन दोपहर 1 बजे तक होंगे. फिलहाल अभी विशेष पूजा चल रही है. डेढ़ बजे शोकाचार पूजा शुरू होगी. जहां शंकराचार्य के माथे पर शालिग्राम भगवान को रखकर दूध से अभिषेक किया जाएगा. जिसके बाद बाद श्रृंगार होगा. उसके बादफिर पालकी बैठाकर शंकराचार्य की शोभायात्रा निकाली जाएगी. जो परमहंसी गंगा कुंड से भगवती मंदिर तक जाएगी. मंदिर की परिक्रमा के बाद बाहर निकलकर समाधि स्थल पर ले जाया जाएगा. इसके बाद काशी से आए पंडित अवधराम शास्त्री के नेतृत्व में विधि सम्पन्न होगी.

ऐसे होगा अंतिम संस्कार

भू-समाधि देने के लिए 6 फीट लम्बा, 6 फीट गहरा और 6 फीट चौड़ा गड्ढा खोदा जाता है. फिर उसकी गाय के गोबर से लिपाई की जाती है. हालांकि कुछ मामलों में समाधि देने से पहले हवन करने की भी परंपरा रही है. इसके बाद गड्ढे में नमक डाला जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि शरीर आसानी से गल सके. समाधि देने से पहले उन्हें नहलाया जाता है. फिर उनका शृंगार किया जाता है यानी उन्हें वही वस्त्र पहनाए जाते हैं जो वो आमतौर पर पहनते हैं. उन्हें चंदन का तिलक लगाया जाता है और रुद्राक्ष की माला पहनाई जाती है.

ऐसे दी जाएगी भू-समाधि

शरीर पर भस्म लगाने के बाद ही उन्हें समाधि तक ले जाया जाता है. समाधि के दौरान उनके शरीर पर घी का लेप किया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि छोटे-छोटे जीव शरीर की ओर आकर्षित हो सकें. समाधि के लिए बनाए गए गड्ढे में उनके शरीर के साथ उनका कमंडल, रुद्राक्ष की माला और दंड को भी रखा जाता है. सबसे अंत में मंत्रों के उच्चारण के साथ मिट्टी भरी जाती है और इस तरह उन्हें भू-समाधि दी जाती है. भू-समाधि में पद्मासन या सिद्धि आसन की मुद्रा में बैठाकर समाधि दी जाएगी. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को भी भू-समाधि उनके आश्रम में दी जाएगी.

समाधि के बाद विधान

हिन्दू धर्म में किसी आम इंसान की मौत के बाद 13 दिन तेरहवीं करने की परंपरा रही है, लेकिन साधू-संतों को भू-समाधि देने के बाद षोडसी प्रक्रिया पूरी की जाती है. पोडसी की प्रक्रिया के तहत समाधि के 16वें दिन भंडारा किया जाता है. जिसमें आम इंसान भी शामिल हो सकते हैं.

एमपी में हुआ था शंकराचार्य का जन्म

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती शंकराचार्य का जन्म 2 सितंबर 1924 को एमपी के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में हुआ था. उनके पिता धनपति उपाध्याय और मां का नाम गिरिजा देवी था. माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा. 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्राएं शुरू की. इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली.

आजादी की लड़ाई में गए जेल

शंकराचार्य ने भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में योगदान दिया और 19 वर्ष की उम्र में वह क्रांतिकारी साधु के तौर पर पहचाने जाने लगे. आजादी की लड़ाई में वह जेल भी गए. स्वरूपानंद सरस्वती ने अयोध्या के राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. वर्ष 1981 में स्वरूपानंद सरस्वती को शंकराचार्य की उपाधि मिली थी.

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