- 01/06/2025
भारत को रूस से मिला 5वीं पीढ़ी के Su-57E फाइटर जेट का प्रस्ताव, डील हुई तो पाकिस्तान के साथ ही चीन की भी हो जाएगी हालत खराब, जानें क्या है खासियत

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के बीच पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स की चर्चा तेज हो गई है। इस बीच, रूस ने भारत को अपने अत्याधुनिक Su-57E फाइटर जेट के निर्यात संस्करण (एक्सपोर्ट वेरियंट) की पेशकश की है। इस प्रस्ताव में भारतीय सिस्टम्स के स्थानीयकरण और एकीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है, जो भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता और मेक इन इंडिया पहल के अनुरूप है।
Su-57E में भारतीय तकनीक का समावेश
Su-57E में भारतीय वायु सेना (IAF) के सुपर-30 जेट प्रोग्राम की प्रमुख तकनीकों को शामिल करने की योजना है। इसमें गैलियम नाइट्राइड (GaN) आधारित एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे (AESA) रडार और भारत द्वारा विकसित मिशन कंप्यूटर शामिल हैं। यह एकीकरण न केवल Su-57E की मारक क्षमता को बढ़ाएगा, बल्कि सुपर-30 प्रोग्राम के साथ तकनीकी समानता सुनिश्चित करके रखरखाव और परिचालन लॉजिस्टिक्स को भी सरल बनाएगा।
इसके अलावा, Su-57E को स्वदेशी हवा से हवा और हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों से लैस करने की सुविधा मिलेगी, जिससे विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम होगी। रूस ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि भारत अपनी जरूरतों के अनुसार Su-57E में बदलाव कर सकता है। इसके लिए रूस जेट का सोर्स कोड और तकनीक साझा करने को तैयार है, जिससे भारतीय कंपनियां, विशेष रूप से सुखोई जेट्स बनाने वाली फर्में, इसका निर्माण कर सकें।
Su-57E की विशेषताएं
पांचवीं पीढ़ी का यह स्टील्थ फाइटर जेट आधुनिक रडार से बचने में सक्षम है, जिसका श्रेय इसके स्टील्थ डिजाइन को जाता है। इसमें R-37M मिसाइलें हैं, जो 400 किलोमीटर की दूरी तक लक्ष्य भेद सकती हैं। रूस का दावा है कि Su-57E फ्रांस के राफेल जेट से भी अधिक घातक है, जो इसे भारतीय वायु सेना के लिए एक शक्तिशाली विकल्प बनाता है।
क्या यह सौदा फायदेमंद होगा?
Su-57E का यह प्रस्ताव भारत के लिए कई मायनों में फायदेमंद हो सकता है। यह न केवल भारतीय वायु सेना की युद्धक क्षमता को बढ़ाएगा, बल्कि स्वदेशी हथियार प्रणालियों और तकनीकों के एकीकरण से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को भी बल मिलेगा। सुपर-30 प्रोग्राम के साथ समानता और तकनीकी हस्तांतरण की सुविधा इस सौदे को और आकर्षक बनाती है। हालांकि, इसकी लागत और दीर्घकालिक परिचालन व्यवहार्यता पर विचार करना भारत के लिए महत्वपूर्ण होगा।