• 20/10/2022

बड़ी खबर: हसदेव में जारी पेड़ों की कटाई पर रोक, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र और राजस्थान सरकार ने कहा- अगली सुनवाई तक नहीं काटेंगे कोई पेड़

बड़ी खबर: हसदेव में जारी पेड़ों की कटाई पर रोक, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र और राजस्थान सरकार ने कहा- अगली सुनवाई तक नहीं काटेंगे कोई पेड़

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हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. इस संबंध में कई याचिकाओं पर कोर्ट सुनवाई कर रही है. इसी बीच केंद्र सरकार और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने कोर्ट में वादा किया कि वे हसदेव अरण्य में अगली सुनवाई तक कोई पेड़ नहीं काटेंगे. यह वादा सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ और हिमा कोहली की बेंच के सामने किया गया.

दरअसल, जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ और हिमा कोहली की बेंच हसदेव में कोयला खदानों के लिए वन भूमि आवंटन को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही है. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरका से भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद-ICFRE की अध्ययन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था. ICFRE ने दो भागों की इस रिपोर्ट में हसदेव अरण्य की वन पारिस्थितिकी और खनन का उसपर प्रभाव का अध्ययन किया है.

वहीं सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. इस दौरान उन्होंने कोर्ट से यह रिपोर्ट पेश करने के लिए समय देने की मांग की है. उन्होंने कहा इसकी अगली तारीख दिवाली की छुट्‌टी के बाद और संभव हो तो 13 नवंबर के बाद दी जाए.

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए एडवोकेट प्रशांत भूषण और नेहा राठी ने कोर्ट में कहा कि सुनवाई आगे बढ़ाने में को आपत्ति नहींं है, लेकिन अगली सुनवाई तक केंद्र सरकार और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम की ओर से आगे किसी पेड़ की कटाई नहीं होनी चाहिए. जिसके बाद सॉलिसीटर ने कहा कि अगली सुनवाई तक हसदेव में किसी पेड़ की कटाई नहीं होगी. फिलहाल कोर्ट ने सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाने का निवेदन स्वीकार कर लिया.

बता दें कि हसदेव अरण्य कटाई को लेकर छत्तीसगढ़ के अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में शिकायत की थी. साथ ही एक अन्य याचिका अंबिकापुर के अधिवक्ता डी.के. सोनी ने दायर की है. याचिका में कहा गया है कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने अडानी समूह के साथ संयुक्त उपक्रम बनाकर खदानों को निजी कंपनी के हवाले कर दिया है. इस तरह के अनुबंध को सर्वोच्च न्यायालय 2014 में पहले ही अवैध घोषित कर चुका है. इस मामले में एक और याचिका हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की ओर से जयनंदन पोर्ते ने दायर की है.