- 15/12/2022
बड़ी खबर: नेता मंत्रियों पर CG में सामाजिक पाबंदी, सतनामी समाज ने संसदीय सचिव को पहले बनाया चीफ गेस्ट फिर कहा मत आना, ये है मामला


छत्तीसगढ़ विधानसभा ने प्रदेश में 76 फीसदी आरक्षण विधेयक सर्वसम्मति से पारित कर दिया है। लेकिन राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं करने की वजह से प्रदेश में अभी कोई भी आरक्षण रोस्टर लागू नहीं है। नए विधेयक में अनुसूचित जनजाति के लिए 32%, ओबीसी को 27%, अनुसूचित जाति को 13 फीसदी और ईडब्ल्यूएस के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित किया गया है। नए आरक्षण विधेयक को लेकर अनुसूचित जाति वर्ग में काफी आक्रोश है। इसका असर अब दिखने भी लगा है। समाज ने नेता-मंत्रियों, विधायकों-सांसदों को सामाजिक कार्यक्रमों में प्रतिबंधित कर दिया है।
मामला बालोद जिले के गुंडरदेही विधानसभा क्षेत्र के अर्जुन्दा का है। बाबा गुरुघासीदास जयंती पर अर्जुन्दा नगर पंचायत ने दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया है। इस कार्यक्रम में गुंडरदेही विधायक और संसदीय सचिव कुंवर निषाद को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था। लेकिन आरक्षण कटौती के विरोध में समाज द्वारा उन्हें मुख्य अतिथि बनाया जाना निरस्त कर दिया है। समाज के द्वारा कुंवर निषाद को पत्र लिखकर इसकी जानकारी भी दी गई है।
जिसमें कहा गया है कि आपको मुख्य अतिथि के लिए आमंत्रित किया गया था। आरक्षण कटौती के विरोध में नेता मंत्री बुलाने पर सामाजिक पाबंदी लगाई गई है। जिसके कारण आपसे विनम्रतापूर्वक आग्रह कर बनाए गए अतिथि को निरस्त किया जा रहा है। पत्र में आगे लिखा है आपसे निवेदन है कि आप लगाए गए सामाजिक पाबंदी का सहयोग कर हमारा 16 प्रतिशत आरक्षण को वापस दिलाएं।
साल 2012 में SC का आरक्षण घटा
छत्तीसगढ़ में साल 2012 से पहले प्रदेश में 50 फीसदी आरक्षण लागू था। जिसमें अनुसूचित जनजाति को 20, अनुसूचित जाति को 16 और ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण मिलता था। लेकिन तत्कालीन रमन सरकार ने साल 2012 में आरक्षण को बढ़ाकर 50 से 58% कर दिया। इसके तहत अनुसूचित जाति को मिलने वाले 16 फीसदी आरक्षण को घटा कर 12 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 20 से बढ़ाकर 32 और ओबीसी को पहले की तरह 14 प्रतिशत आरक्षण दिया जाने लगा।
अनुसूचित जाति का आरक्षण घटाए जाने के विरोध में समाज के कई लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसकी सुनवाई करते हुए इस साल 19 सितंबर को हाईकोर्ट ने 50 फीसदी से ज्यादा के आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था। न्यायालय ने प्रदेश में लागू 58 प्रतिशत आरक्षण को निरस्त कर दिया। जिसके बाद से प्रदेश में आरक्षण पूरी तरह से खत्म हो गया है। अब प्रदेश में आरक्षण का कोई भी रोस्टर लागू नहीं है।
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