• 05/04/2023

छत्तीसगढ़ में औद्योगिक इलाका और स्लम एरिया बने टीबी के हाई रिस्क जोन, क्लाइमेट चेंज और औद्योगिक प्रदूषण की दोहरी मार झेल रही हैं महिलाएं

छत्तीसगढ़ में औद्योगिक इलाका और स्लम एरिया बने टीबी के हाई रिस्क जोन, क्लाइमेट चेंज और औद्योगिक प्रदूषण की दोहरी मार झेल रही हैं महिलाएं

Follow us on Google News

रजनी ठाकुर, रायपुर। छत्तीसगढ़ के औद्योगिक इलाके टीबी का हाई रिस्क जोन बन गए है, प्रदेश के औद्योगिक इलाकों और स्लम एरिया में टीबी के सबसे ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. चिंता की बात ये भी है कि टीबी का खतरा 25 से 40 साल के आयुवर्ग में सबसे ज्यादा हैं. रायपुर समेत प्रदेश के दुसरे औद्योगिक इलाके हाईरिस्क जोन में हैं.औद्योगिक इलाकों के बाद गंदी बस्तियों में रहने वाले लोग और खदानों में काम करने वाले लोग आते हैं. प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल डॉ भीमराव अंबेडकर के आंकड़ो पर गौर करें तो 2018 से लेकर 2020 तक रायपुर जिले में टीबी के सबसे ज्यादा मामले 25 से 40 साल तक के लोगों में सामने आए हैं. 2018 में टीबी के 5190, 2019 में 6901 और कोरोना काल 2020 में 4984 टीबी मरीजों की पहचान हुई है.दरअसल रायपुर में प्रदेश के बड़े औद्योगिक इलाके आते हैं. रायपुर जिले के सिलतरा और उरला जैसे औद्योगिक क्षेत्र में प्रदुषण और धुल की वजह से सांस और फेफड़े संबंधित बीमारियां सबसे ज्यादा बढ़ी है. इन इलाकों में काम करने वाले लोगों ज्यादातर 25-40 साल की एज ग्रुप से ही आते हैं.

स्क्रीनिंग की कमी और मॉनिटरिंग के अभाव ने बढ़ाया खतरा

औद्योगिक इलाके , बस्ती वाले इलाके कहने को तो शहर में हैं लेकिन ये अपने आप में एक बिल्कुल अलग दुनिया की तरह हैं. जहां नियमित हेल्थ चेकअप जैसी कोई व्यवस्था नहीं है. और यहीं से स्थिति गंभीर हो जाती है. प्रदेश के स्वास्थय विभाग और जिला स्वास्थय संचालनालय के पास कोई सटीक आंकड़ा नहीं है कि फैक्ट्रीयों में काम करने वाले कितने कर्मचारी टीबी के शिकार हैं और किन चरणों में उनका इलाज चल रहा है. फैक्ट्री एरिया के पास ही बस्तियां भी हैं. और ये दोनों ही इलाके टीबी के लिए हाई रिस्क जोन हैं. इन इलाकों में प्रदुषण का स्तर आम रहवासी इलाकों की तुलना में कहीं ज्यादा होता है. ऐसे में  खांसी आना, सांस लेने में तकलीफ जैसे शुरुआती लक्षण को सामान्य परिस्थिति मानते हुए लोग टीबी की जांच में देरी करते हैं. और जब तक टीबी की स्थिति साफ होती है ,तब तक स्थिति काफी गंभीर हो चुकी होती है.

फैक्ट्री के कर्मचारियों को आम कर्मचारियों की तुलना में ज्यादा समय तक काम करना होता है, इनके काम करने का समय 10-12 घंटों का होता है, साथ ही नियमित छुट्टी की भी व्यवस्था नहीं होती है. प्रदुषण में ज्यादातर समय रहने से जहां टीबी का खरता बढ़ता है ,वहीं नियमित छुट्टी ना होने की वजह से हेल्थ चेकअप भी नहीं हो पाता है. ऐसे में जरुरी है कि फैक्ट्रीयों में कर्मचारियों के बीच जाकर ज्यादा से ज्यादा टीबी जांच की जाए. स्क्रीनिंग जितनी ज्यादा होगी उतनी ही बड़ी संख्या में टीबी के मामले समय रहते पहचान में आ पाएंगे.

प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं प्रदेशभर में औद्योगिक इलाकों और 25-40 आयुवर्ग में ही सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं

साल 2018

0-5 साल-724
6-18साल-3662
19-45साल-22218
46-79साल-12569
70साल से उपर-2122

साल 2019

0-5 साल-710
6-18साल-3662
19-45साल-23362
46-79साल-13266
70साल से उपर-2485

साल 2020

0-5 साल-407
6-18साल-2500
19-45साल-17111
46-79साल-9337
70साल से उपर-1617

साल 2018 से लेकर साल 2020 तक तीनों ही साल के आंकड़ो पर गौर करें तो साफ होता है कि 19 से 45 साल आयु वर्ग में ही टीबी के सबसे ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं, ये वही आयु वर्ग है जो कामकाजी है, छत्तीसगढ़ के कुछ प्रमुख औद्योगिक इलाकों वाले जिलों के आंकड़ो पर गौर करें तो ये बात भी प्रमाणित हो जाती है कि औद्योगिक इलाकों में सामने आ रहे मामलों पर गंभीरता से काम करने और स्क्रीनिंग और मॉनिटरिंग के जरिए उन्हें रोकने की जरुरत है. छत्तीसगढ़ में रायपुर के अलावा कोरबा, धमतरी ,बलौदाबाजार और दुर्ग औद्योगिक इलाकों वाले जिले हैं, जहां बीते 3 साल के आंकड़े कुछ इस तरह हैं.

कोरबा

साल2018

0-5 साल-54
6-18साल-127
19-45साल-827
46-79साल-420
70साल से उपर-74

साल 2019

0-5 साल-87
6-18साल-194
19-45साल-1012
46-79साल-540
70साल से उपर-100

साल 2020

0-5 साल-39
6-18साल-119
19-45साल-771
46-79साल-374
70साल से उपर-61

दुर्ग

साल 2018

0-5 साल-165
6-18साल-303
19-45 साल-1930
46-69साल-958
70 से उपर-190

साल 2019

0-5साल-93
6-18साल-314
19-45साल-1922
46-69साल-1056
70 से उपर-234

साल 2020

0-5साल-75
6-18साल-229
19-45साल-1719
46-69साल-888
70 से उपर-186

क्या कदम उठाए जा रहे हैं, क्या कदम उटाए जाने की जरुरत है

टीबी को लेकर स्वास्थय विभाग अभियान चला रहा है ,जिसके तहत टीबी की जांच के लिए प्राथमिक स्वास्थय केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थय केंद्र ,जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में निशुल्क व्यवस्था उपलब्ध कराई गई है. साथ ही हाई रिस्क जोन की पड़ताल के लिए अभियान भी चलाया जा रहा है.

स्वास्थय विभाग को अब ज्यादा तैयारी के साथ टीबी पर काम करने की जरुरत है. 19-45 साल के आयुवर्ग के लोग, और खासतौर पर ऐसे लोग जो औद्योगिक इलकों में काम कर रहे हैं, उनकी लगातार स्क्रिीनिंग की जानी चाहिए. स्वास्थय विभाग को जिला चिकित्सा विभाग के साथ मिलकर औद्योगिक जिलों में विशेष अभियान चलाए जाने की जरुरत है.और इसी तरह का अभियान दुसरे हाई रिस्क जोन जैसे स्लम एरिया ,खदान वाले क्षेत्रों में भी चलाया जाना चाहिए ताकि समय पर स्क्रीनिंग और प्लांड मॉनिटरिंग के जरिए टीबी को नियंत्रित किया जा सके.

टीबी से जुड़ी सामान्य जानकारी

संक्रामक बीमारी है, जो ट्यूबरक्‍युलोसिस बैक्टीरिया के कारण होती है। टीबी का सबसे प्रभाव फेफडों पर होता है। फेफड़ों के साथ ही ब्रेन, यूटरस, मुंह, लिवर, किडनी, गले आदि में भी टीबी हो सकती है। सबसे कॉमन फेफड़ों का टीबी है, जो कि हवा के जरिए एक से दूसरे इंसान में फैलती है। टीबी के मरीज के खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदें इन्हें फैलाती हैं। फेफड़ों के अलावा दूसरी कोई टीबी एक से दूसरे में नहीं फैलती। टीबी खतरनाक इसलिए है क्योंकि यह शरीर के जिस हिस्से में होती है, सही इलाज न हो तो उसे बेकार कर देती है। इसलिए टीबी के आसार नजर आने पर जांच करानी चाहिए।

क्या है शुरुआती लक्षण

खांसी आना

टीबी सबसे ज्यादा फेफड़ो को प्रभावित करती है, इसलिए शुरुआती लक्षण खांसी आना है। पहले तो सूखी खांसी आती है लेकिन बाद में खांसी के साथ बलगम और खून भी आने लगता है। दो हफ्तों या उससे ज्यादा खांसी आए तो टीबी की जांच करा लेनी चाहिए।

पसीना आना

पसीना आना टीबी होने का लक्षण है। मरीज को रात में सोते समय पसीना आता है। वहीं, मौसम चाहे जैसा भी हो रात को पसीना आता है। टीबी के मरीज को अधिक ठंड होने के बावजूद भी पसीना आता है।

बुखार रहना

जिन लोगों को टीबी होती है, उन्हें लगातार बुखार रहता है। शुरुआत में लो-ग्रेड में बुखार रहता है लेकिन बाद संक्रमण ज्यादा फैलने पर बुखार तेज होता चला जाता है।

थकावट होना

टीबी के मरीज की बीमारी से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। जिसके कारण उसकी ताकत कम होने लगती है। वहीं, मरीज के कम काम करने पर अधिक थकावट होने लगती है।

वजन घटना

टीबी हो जाने के बाद लगातार वजन घटने लगता है। खानपान पर ध्यान देने के बाद भी वजन कम होता रहता है। वहीं, टीबी के मरीज की खाने को लेकर रुचि कम होने लगती है।

सांस लेने में परेशानी

टीबी हो जाने पर खांसी आती है, जिसके कारण सांस लेने में परेशानी होती है। अधिक खांसी आने से सांस भी फूलने लगती है।

कैसे बचें टीबी से

1- 2 हफ्ते से ज्यादा खांसी होने पर डॉक्टर को दिखाएं। दवा का पूरा कोर्स लें। डॉक्टर से बिना पूछे दवा बंद न करे।
मास्क पहनें या हर बार खांसने या छींकने से पहले मुंह को पेपर नैपकिन से कवर करें।
मरीज किसी एक प्लास्टिक बैग में थूके और उसमें फिनाइल डालकर अच्छी तरह बंद कर डस्टबिन में डाल दें। यहां-वहां नहीं थूकें।
मरीज हवादार और अच्छी रोशनी वाले कमरे में रहे। साथ ही एसी से परहेज करे।
पौष्टिक खाना खाए, एक्सरसाइज व योग करे।