- 13/07/2022
शिवसेना का द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने के पीछे ये है बड़ी वजह…


मुंबई। महाराष्ट्र में राजनीतिक उलटफेर और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के यू-टर्न ने एक बार फिर से राजनीतिक हलचल तेज कर दिया है। दरअसल ठाकरे ने एनडीए से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन की घोषणा कर अपने विरोधियों को फिर से झटका दिया है। एक ओर जहां शिवसेना दो फाड़ हो चुकी है तो वहीं ऐन वक्त पर ठाकरे ने एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देकर राजनीतिक समीकरण फिर से बिठाने का प्रयास किया है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कहीं ठाकरे अपनी डूबती नैया पार लगाने के प्रयास में तो नहीं है।
सत्ता के गलियारों से निकलकर एक खबर आई थी कि शिवसेना की बैठक में पार्टी के 18 में से 12 सांसदों ने उद्धव ठाकरे से एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के समर्थन का आग्रह किया था। इसके बाद शिवसेना के नेता संजय राउत ने भी हाल ही में यह संकेत दिया था कि शिवसेना द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दे सकती है। अब 34 सांसदों के आग्रह करने की खबर से संजय राउत का वो बयान भी सही प्रतीत होता है जिसमें उन्होंने था कि मुर्मू को समर्थन देने का यह मतलब नहीं निकालना चाहिए कि शिवसेना भाजपा को समर्थन दे रही है। वहीं उन्होंने यह भी कहा था कि शिवसेना कभी दबाव में निर्णय नहीं लेता, हमेशा सोच-विचार करके ही फैसला लिया जाता है। दूसरी ओर अब ठाकरे दावा कर रहे हैं कि इस बात का फैसला लेने उन पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाया गया। अब संजय राउत के बयान और ठाकरे के बयान दोनों से ही समझा जा सकता है कि आखिर सच्चाई क्या है।
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अब राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि उद्धव ठाकरे अब तक यह समझ चुके हैं कि बिना भाजपा के उनकी नैया पार नहीं हो सकती। शायद यही वजह है कि शिवसेना को आखिरकार एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देना पड़ रहा है। दूसरी ओर इस समर्थन से शिवसेना यह भी स्पष्ट करना चाह रही है और राजनीतिक संदेश दे रही है कि शिवसेना और भाजपा का रिश्ता अभी टूटा नहीं है। यदि मौका मिला तो आने वाले समय में शिवसेना फिर से भाजपा के साथ आकर काम करेगी।
महाराष्ट्र में चल रहे सियासी उठापटक के बाद अब ठाकरे को भी यह एहसास हो चुका है कि वो बहुत बड़ी मुश्किल से गुजर रहे हैं। उनकी सरकार गिर चुकी है और अब विपक्षी उन्हें राजनीतिक निशाने पर ले सकते हैं और वे किसी बड़ी राजनीतिक हमले के शिकार हो सकते हैं। बहरहाल शिवसेना के इस निर्णय के बाद शायद जनता के मन में एक बार फिर से शिवसेना के प्रति समानुभूति बढ़ सकती है और आगामी समय में शिवसेना ऐसा कोई काम नहीं करेगी जिससे पार्टी की छवि पर आंच आए। एनसीपी और कांग्रेस से गठबंधन के बाद से ही शिवसेना के निर्णयों से जनता में नाराजगी महसूस की जा रही थी।
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