• 26/03/2024

बस्तर की बिसात: बीजेपी लगा पाएगी सेंध या कांग्रेस की कुर्सी रहेगी बरकरार, किसके साथ आदिवासी?

बस्तर की बिसात: बीजेपी लगा पाएगी सेंध या कांग्रेस की कुर्सी रहेगी बरकरार, किसके साथ आदिवासी?

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छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से बस्तर की सीट सबसे अहम मानी जाती है. ऐसा कहा जाता है कि जिसने बस्तर फतह कर लिया, राज्य में उसकी सरकार बनती है. विधानसभा के चुनाव में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. अब बारी लोकसभा चुनाव की है और बस्तर की बिसात बिछ चुकी है. इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प है. एक तरफ बीजेपी ने महेश कश्यप पर भरोसा जताया है, तो वहीं कांग्रेस ने अपने भरोसेमंद आदिवासी नेता और पूर्व मंत्री कवासी लखमा को मैदान में उतारा है.

बस्तर सीट इसलिए भी अहम मानी जाती है क्योंकि इस क्षेत्र में आदिवासियों की बहुलता है. बस्तर लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. ये पूरा क्षेत्र नक्सल प्रभावित इलाका है. हालांकि यहां धीरे-धीरे हालात में बदलाव देखने को मिल रहा है.

कवासी लखमा को जानिए?

  • वार्ड पंच से शुरू किया राजनीतिक सफर
  • 1995-96 में ब्लॉक कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष रहे
  • 1998 में पहली बार कोंटा विधानसभा से विधायक बने
  • 2003, 2008, 2013, 2018 में विधायक बने
  • 2002 में कांग्रेस आदिवासी प्रकोष्ठ जिला अध्यक्ष दंतेवाड़ा रहे
  • जिला सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक जगदलपुर के अध्यक्ष बने
  • 2004 में सरकारी उपक्रम संबंधी समिति के सदस्य बने
  • 2008 से 2018 तक पीसीसी सदस्य कोंटा से बने
  • कोंटा विधानसभा से कवासी लखमा विधायक 5 बार के विधायक हैं
  • अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से कोंटा विधानसभा सीट है
  • साल 1998 में पहली बार कोंटा से लखमा को टिकट मिली
  • 2018 में भूपेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे

महेश कश्यप कौन हैं?

  • वर्तमान में सरपंच संघ के अध्यक्ष हैं
  • भारतीय जनता पार्टी अनुसूचित जनजाति मोर्चा के जिला अध्यक्ष
  • सर्व आदिवासी आदिवासी समाज के प्रदेश उपाध्यक्ष
  • बस्तर में धर्मांतरण के विरोध में ‘‘आया चोर द्वार कार्यक्रम‘‘ चलाया
  • 1996 से 2001 तक बजरंग दल के जिला संयोजक रहे
  • 2001 से 2007 तक विश्व हिंदू परिषद जिला संगठन मंत्री रहे
  • 2007 से 2008 तक विश्व हिंदू परिषद के विभाग संगठन मंत्री रहे
  • 2014 में ग्राम पंचायत कलचा के सरपंच भी रहे

बस्तर का राजनीतिक इतिहास

  • साल 1952 में निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा ने इस सीट पर जीत हासिल की
  • साल 1957 में कांग्रेस उम्मीदवार सुरति किस्तैया ने जीत दर्ज की
  • साल 1962 में निर्दलीय उम्मीदवार लखमु भवानी जीते
  • साल 1967 में निर्दलीय उम्मीदवार जे सुंदरलाल को मिली जीत
  • साल 1971 में निर्दलीय उम्मीदवार लंबोदर बलियार ने जीत हासिल की
  • साल 1977 में बीएलडी उम्मीदवार द्रिगपाल शाह केशरी शाह ने जीत हासिल की थी
  • साल 1980 में कांग्रेस से लक्ष्मण कर्मा ने जीत हासिल की
  • साल 1984 में कांग्रेस से मनकुरम सोढ़ी ने जीत दर्ज की
  • साल 1989 में कांग्रेस से मनकुरम सोढ़ी ने जीत हासिल की
  • साल 1991 में कांग्रेस के मनकुरम सोढ़ी जीते
  • साल 1996 में कांग्रेस के महेन्द्र कर्मा ने जीत हासिल की
  • साल 1998 में बीजेपी के बलिराम कश्यप ने जीत हासिल की
  • साल 1999 में बीजेपी से बलिराम कश्यप को जीत मिली
  • साल 2004 में भी बीजेपी से बलिराम कश्यप को जीत मिली
  • साल 2009 में बीजेपी के बलिराम कश्यप को जीत मिली
  • साल 2014 में बीजेपी के दिनेश कश्यप को जीत मिली
  • साल 2019 में कांग्रेस से दीपक बैज को जीत मिली

आदिवासी इलाके में मतदान प्रतिशत

  1. साल 2004: 43.33 फीसदी मतदान
  2. साल 2009: 47.34 फीसदी मतदान
  3. साल 2014: 59.32 फीसदी मतदान
  4. साल 2019: 66.19 फीसदी मतदान

बस्तर के प्रमुख मुद्दे: इस क्षेत्र के लोगों को मूलभूत सुविधाओं की कमी है. सड़क, पानी, बिजली की समस्याएं यहां आम है. इसके अलावा कई क्षेत्र पहुंचविहीन है. लोगों तक शासकीय योजनाओं का लाभ पहुंचाना जनप्रतिनिधियों के लिए बड़ी चुनौती है, क्योंकि अधिकतर क्षेत्रों में नक्सलियों का दबदबा है. हालांकि अब पहले से कुछ सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी बस्तर लोकसभा क्षेत्र का कई हिस्सा नक्सलियों का दंश झेल रहा है. यहां रहने वाले ग्रामीणों का जीवन जंगल पर ही आधारित है. इन लोगों के जीवन से विकास कोसों दूर है. शिक्षा तो दूर की बात है, इन्हें बिजली, सड़क और पेयजल के लिए भी काफी जद्दोजहद करना पड़ता है. हालांकि ये लोकतंत्र के महापर्व में अपना योगदान देते हैं.