- 29/07/2022
उच्च न्यायालय का बड़ा फैसला : पूर्व से विवाहित पत्नी को दांपत्य का अधिकार नहीं


द तथ्य डेस्क। विवाह के पवित्र बंधन को बदनाम करने वाली एक महिला के खिलाफ छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (High Court) ने बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि पत्नी यदि पहले से ही विवाहित हो तो वह दांपत्य जीवन बहाल करने की हकदार नहीं है। कोर्ट का यह फैसला विशेष विवाह अधिनियम के तहत आए एक प्रकरण की सुनवाई के बाद दिया गया है।
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बिलासपुर उच्च न्यायालय के जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस दीपक तिवारी की अदालत में प्रार्थी किशोर कुमार ने फैमली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। दरअसल किशोर कुमार की पत्नी पहले से शादीशुदा थी और उसने जानबूझकर अपना विवाह छिपाते हुए किशोर कुमार से शादी कर ली थी। इसकी जानकारी होने पर किशोर ने उसे मायके में छोड़ दिया था। इसके बाद से ही मामला कोर्ट में चल रहा था। महिला के पति किशोर कुमार ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में अपील प्रस्तुत किया था। अपील में कहा गया कि उसकी शादी माया देवी के साथ 5 मई 2001 को हिंदू रीति के अनुसार हुई थी। शादी के समय उसकी पत्नी बीएससी द्वितीय वर्ष की छात्रा थी। तब उनकी सहमति से वह फाइनल ईयर की परीक्षा में शामिल होने मायके गई थी। परीक्षा दिलाने के बाद वह 6 मई 2002 को वापस लौटी थी।
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पत्नी को लेकर आने के कुछ दिन बाद ही किशोर कुमार के घर में गुमनाम चिट्ठियां आने लगी। इसमें उसकी पत्नी के विवाहित होने संबंध में जानकारी दी गई थी। लेटर के साथ सबूत आने लगे तो पति-पत्नी के बीच विवाद शुरू हुआ। पत्र में मिले सबूत से किशोर को पता चल गया था कि उसकी पत्नी ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर पहले ही शादी कर चुकी है। अपने अपील में पति किशोर ने बताया कि उसे 6 मई 2002 को पता चला कि उसकी पत्नी माया देवी इस्लाम धर्म अपना कर शबनम निशा बन कर सैय्यद जुबेर के साथ शादी कर चुकी थी। उसकी पत्नी और उसके ससुर ने जानबूझकर कपटपूर्वक इस बात को छिपाकर उसकी शादी कराई थी। ऐसे में पत्नी वैवाहिक अधिकार के तहत क्षतिपूर्ति पाने की कतई अधिकारी नहीं हो सकती। प्रार्थी ने सबूत के तौर पर दुर्ग के विवाह अधिकारी का सर्टिफिकेट और फोटोग्राफ्स भी उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया था। जिसमें माया देवी के शबनम निशा बनने व सैय्यद जुबेर से 26 दिसंबर 2001 को शादी करने का उल्लेख है।
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