• 08/04/2024

किसी दल को कैसे मिलता है चुनाव चिन्ह, भारत में चुनाव आयोग का क्या है इतिहास, जानिए…

किसी दल को कैसे मिलता है चुनाव चिन्ह, भारत में चुनाव आयोग का क्या है इतिहास, जानिए…

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लोकसभा चुनाव 2024 की बिसात बिछ चुकी है। सभी पार्टियों को चुनाव आयोग की तरफ से चुनाव चिन्ह (election symbol) दिया जाता है। चुनाव आयोग की तरफ से किसी को कमल का फूल तो किसी पार्टी को गैस का सिलेंडर दिया गया है, तो किसी को लेडिज पर्स तो किसी को सेब का चिन्ह आवंटित किया गया है।

राजनीतिक विश्लेषक का मानना है कि चुनाव चिन्ह (election symbol) जीत हार में बड़ी भूमिका निभाता है। नया चुनाव चिन्ह मिलने पर जनता के बीच उसकी पहचान बनाना एक बड़ी चुनौती होती है। चलिए आपको बताते हैं कि चुनाव चिन्ह किसी पार्टी को कैसे मिलता है।

चुनाव चिन्ह का इतिहास

भारत की आजादी से पहले देश में दो प्रमुख राजनीतिक दल थे। पहली थी कांग्रेस और दूसरी मुस्लिम लीग। कांग्रेस पार्टी की स्थापना के बाद दो बैलों का जोड़ा कांग्रेस पार्टी का सिंबल था। वहीं, 1906 में बनने वाली ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का अर्ध चंद्रमा और तारा पार्टी का चुनाव चिन्ह था, लेकिन इंडिया में पार्टी सिंबल या चुनाव चिन्ह के सफर की असली कहानी साल 1951 के बाद शुरू हुई थी। 1952 में कुल 14 पार्टियां चुनाव में शामिल हुई थी। आज पूरे देश में ढाई हजार से भी अधिक पार्टियां हैं।

चुनाव चिन्ह का आवंटन

भारत में चुनाव कराने से लेकर पार्टियों को मान्यता और उन्हें चुनावी सिंबल देने का काम इलेक्शन कमीशन ही करता है। चुनाव आयोग को संविधान के आर्टिकल 324, रेप्रजेंटेशन  ऑफ द पीपुल ऐक्ट 1951 और कंडक्ट ऑफ इलेक्शंस रूल्स 1961 के माध्यम से यह पावर मिलती है। इलेक्शन कमीशन 1968 के मुताबिक चुनाव चिन्ह का आवंटन करता है।

चुनाव चिह्नों की दो लिस्ट

इलेक्शन कमीशन के पास कई तरह के चुनावी चिन्ह की भरमार होती है। आयोग चुनाव चिह्नों के लिए दो लिस्ट तैयार करके रखता है। पहली लिस्ट में वे चिन्ह होते है, जिनका आवंटन पिछले कुछ सालों में होता है। वहीं, दूसरी लिस्ट में ऐसे सिंबल होते हैं जिनको किसी दूसरे को नहीं दिया गया होता है। चुनाव आयोग अपने पास रिजर्व में कम से कम ऐसे 100 सिंबल हमेशा रखता है, जो अब तक किसी को नहीं दिए गए हैं।

हालांकि, कोई पार्टी अगर अपना चुनावी सिंबल खुद चुनाव आयोग को बताता है और वह सिंबल किसी के पास पहले से नहीं है तो कमीशन उस पार्टी को दे देता है।

राष्ट्रीय दल का चिन्ह पूरे देश के लिए

राष्ट्रीय दल को चुनाव आयोग की तरफ से जो चुनाव चिह्न दिया जाता है, पूरे देश के लिए होता है। राष्ट्रीय दल की मान्यता चुनाव आयोग के तरफ से ही दी जाती है। उसके लिए कुछ मापदंड भी चुनाव आयोग की तरफ से तय हैं। राष्ट्रीय दल में बीजेपी का कमल, कांग्रेस का हाथ, आप का झाड़ू शामिल है।

राज्य स्तरीय दल की मान्यता प्राप्त करने वाले दल को जिस राज्य में मान्यता मिली है वहां चुनाव चिन्ह मिलता है। राज्य स्तरीय दल की मान्यता भी चुनाव आयोग देता है। उसकी कुछ शर्ते हैं जिसे पूरा करना होता है। राज्य स्तरीय दल में राजद लालटेन. जदयू का तीर और झारखंड मुक्ति मोर्चा तीर धनुष है।

चुनाव आयोग करता है समीक्षा

चुनाव आयोग बड़ी संख्या में गैर मान्यता प्राप्त दल को भी चुनाव चिन्ह आवंटित करता है। इसके अलावा स्वतंत्र रूप से लड़ने वाले निर्दलीय उम्मीदवार को भी चुनाव आयोग चुनाव चिन्ह आवंटित करता है। गैर मान्यता प्राप्त दल और निर्दलीय को चुनाव चिन्ह के लिए चुनाव आयोग पर निर्भर होना पड़ता है।

चुनाव आयोग समय-समय पर समीक्षा भी करता है और जो मान्यता की शर्ते हैं उसे पूरा नहीं करने पर आयोग राष्ट्रीय राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा छीन भी लेता है। उनका चुनाव चिन्ह भी उसी के हिसाब से चुनाव आयोग तय करता है। गैर मान्यता प्राप्त दलों को भी चुनाव आयोग हर बार चुनाव के समय चुनाव चिन्ह देता है।

चुनाव आयोग का होता फैसला

विधान परिषद के पूर्व उपसभापति सलीम परवेज का कहना है कि ये तो चुनाव आयोग ही फैसला करता है कि किस कौन सा चुनाव चिन्ह देना है। कई बार क्षेत्रीय दलों को भी परेशानी होती है. जैसे बिहार में जदयू को तीर छाप चुनाव चिन्ह मिला हुआ है। महाराष्ट्र की शिवसेना की पार्टी को तीर धनुष चुनाव चिन्ह मिला हुआ है, जिसका नुकसान जदयू को कई बार होता है। इसी तरह झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी तीर धनुष चुनाव चिन्ह मिला हुआ है।

चुनाव आयोग की तरफ से अगर इस तरह का चुनाव चिन्ह किसी उम्मीदवार को दिया जाता है तो जदयू को इससे बिहार में नुकसान उठाना पड़ता है। जदयू की तरफ से इसको लेकर कई बार आपत्ति भी दर्ज कराई गई है।

आयोग फ्रिज करता है चुनाव चिन्ह

कई बार पार्टियों के बीच डिस्प्यूट होने के कारण भी चुनाव का मामला विवाद में फंस जाता है। आयोग चुनाव चिन्ह फ्रीज कर लेता है। बिहार में लोजपा का चुनाव चिन्ह पहले बंगला था। लोजपा के दो भाग में बंटने के बाद चुनाव आयोग ने यह चुनाव चिन्ह फ्रीज कर लिया दोनों गुट को अलग-अलग चुनाव चिन्ह दिया गया। कई बार मान्यता प्राप्त दलों की ओर से भी चुनाव चिन्ह बदलने का आग्रह चुनाव आयोग की तरफ से किया जाता है यदि वह चुनाव चिन्ह किसी को किसी के पास नहीं होता है तब आयोग उसे बदल भी देता है।