• 04/04/2024

अब किसान होंगे मालामाल !अभी तक जिसको कचरा समझ फेंक रहे थे वह निकला 24 कैरेट का सोना

अब किसान होंगे मालामाल !अभी तक जिसको कचरा समझ फेंक रहे थे वह निकला 24 कैरेट का सोना

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पराली जलाने के मामले में पंजाब के बाद दूसरे नंबर पर मध्यप्रदेश है।पराली से एक नहीं, कई समस्याएं पैदा होती है। पर्यावरण तो खराब होता ही है, खेत की उर्वरा शक्ति भी कम हो जाती है। लेकिन अब मध्यप्रदेश के महाकौशल क्षेत्र में किसानों ने पराली को लाभ का सौदा बना लिया है। किसानों ने पराली से मालामाल होने का रास्ता खोज लिया है।

किसान अब पराली को जलाने के बजाय उसे भूसे के रूप में व्यापारिक उपयोग करने लगे हैं।इसके अलावा पराली से ग्रीन खाद बनाने के साथ ही कई किसान मालामाल हुए हैं।

मक्के की पराली का स्टैंड रॉड के रूप में उपयोग

मध्य प्रदेश में मक्के की फसल काफी उगाई जाने लगी है। छिंदवाड़ा जिले के कुंडाली कला गांव के किसान मोहन रघुवंशी ने पराली जलाने की जगह उसका ऐसा प्रयोग किया कि अब उसे दोगुना फायदा हो रहा है।

दरअसल, मक्के की फसल के बाद किसान ने बीच में सेम की फसल लगा दी।सेम की फसल को खड़ा रखने के लिए स्टैंड रॉड की जरूरत पड़ती है, ताकि जमीन पर उसकी बेल ना चल सके।

किसानों ने उनकी जगह पर मक्के के पौधों का उपयोग किया मोहन रघुवंशी ने सेम की बेल को मकई के पौधों के ऊपर चढ़ा दिया ताकि बेलों को दूसरे सहारे की जरूरत ना पड़े। इसकी वजह से किसान के स्टैंड रॉड का खर्च बचा और बाद में इस पर ही प्लाऊ चलाकर ग्रीन खाद भी बना लिया।

खेतों में बनाई जा रही पराली से ग्रीन खाद

पराली से अपने खेतों में ही ग्रीन खाद बनाई जा सकती है, जिससे मिट्टी उपजाऊ होगी। इसके लिए बाजार में मिलने वाला डी कंपोजर का एक डिब्बा काफी होता है,  जब 5 से 6 दिन में इस घोल को तैयार करके जब इसमें कीटाणु नजर आने लगे और बदबू आने लगे तो इसका खेतों में छिड़काव कर देना चाहिए।8 से 10 दिन में पराली गलकर ग्रीन खाद में तब्दील हो जाती है।

पराली से बन रही ब्रिक्स, ऐसे करें उपयोग

कोई भी बिल्डिंग बनाने के लिए सबसे ज्यादा उपयोग ब्रिक्स का होता है। आमतौर पर ब्रिक्स मिट्टी के बनाए जाते हैं। लेकिन अब इनमें पराली का उपयोग किया जाने लगा है।

पराली को खेतों से काटने के बाद मशीन में उसे बारीक किया जाता है, जिसके बाद ब्रिक्स बनाने के काम में आने वाली मिट्टी में इसे मिलाकर आसानी से ब्रिक्स बनाई जाती है। जिससे किसानों को मिट्टी का आधा खर्च बच जाता है और ब्रिक्स मजबूत भी बनते हैं।