• 18/07/2022

दहेज प्रताड़ना को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना पति और ससुराल वालों के साथ क्रूरता, कहते हुए हाईकोर्ट ने दिया ये निर्णय

दहेज प्रताड़ना को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना पति और ससुराल वालों के साथ क्रूरता, कहते हुए हाईकोर्ट ने दिया ये निर्णय

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बिलासपुर। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने आज दहेज प्रताड़ना के एक मामले की सुनवाई करते हुए बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस रजनी दुबे की बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दहेज प्रताड़ना के प्रकरण को विवाहिता द्वारा हथियार के रूप में इस्तेमाल करना पति व ससुरालवालों के साथ क्रूरता की श्रेणी में आता है। इस तरह के प्रकरण में पति अपनी पत्नी से तलाक लेने का अधिकार रखता है। हाईकोर्ट में एक प्रकरण की सुनवाई करते हुए डबल बेंच की अदालत ने यह निर्णय दिया है। कोर्ट ने प्रकरण में डॉक्टर पति की तलाक के अपील को स्वीकार किया है साथ ही उसे पत्नी से तलाक लेने तथा टीचर पत्नी को अपने वेतन से प्रतिमाह 15 हजार रुपए भरण-पोषण राशि देने का आदेश दिया है।

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जानकारी के अनुसार मूल रूप से सरगुजा जिले के चांदनी थाना क्षेत्र की 26 साल की युवती की शादी वर्ष 1993 में डॉ. रामकेश्वर सिंह के साथ हुई थी। महिला कोरबा जिले के बालको क्षेत्र के एक प्राइवेट स्कूल टीचर हैं। वहीं डॉ. रामकेश्वर कोंडागांव के मर्दापाल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ हैं। शादी के कुछ साल के भीतर ही दोनों पति-पत्नी अलग-अलग रह रहे थे। पत्नी के अलग रहने पर डॉक्टर ने 1996 में तलाक के लिए परिवाद दायर किया था। इसके बाद उसकी पत्नी ने सरगुजा जिले के चांदनी थाने में धारा 498-ए के तहत दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज करा दिया। इस प्रकरण में विवाहिता ने अपने पति, सास, ससुर, देवर तथा ननद सहित अन्य लोगों को आरोपी बनाया था।

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दहेज प्रताड़ना के इस प्रकरण में महिला ने अपने पति और ससुरालवालों पर एक लाख रुपए दहेज की मांग करने का आरोप लगाया था। निचली अदालत में ट्रॉयल के दौरान आरोप साबित नहीं होने पर पति और ससुरालवालों को बरी कर दिया गया था। याचिकाकर्ता डॉक्टर ने दहेज प्रताड़ना के केस से बरी होने के बाद साल 2013 में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए परिवाद दायर किया था। जिसे फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया, इस फैसले के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की थी।

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याचिकाकर्ता डॉक्टर ने कोर्ट को बताया कि उनकी पत्नी ने दहेज प्रताड़ना का झूठा केस दर्ज कराया था। जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है और केस से उन्हें बरी किया है। दहेज केस में फंसाने के बाद उनकी मां की 6 जुलाई 1999 को मौत हो गई। इस दौरान भी उनकी पत्नी ससुराल नहीं आई। इस प्रकरणए की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने महिला के वकील के तर्कों को भी सुना।

सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि शादी के बाद से दोनों पक्ष एक-दूसरे के खिलाफ आरोप लगाते रहे हैं। साल 1996 के बाद से दोनों पक्ष अलग-अलग रह रहे हैं और अदालतों में मुकदमेबाजी करते रहे हैं। कोर्ट ने माना कि दहेज प्रताड़ना के केस को महिला ने हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। जो पति और ससुरालवालों के साथ क्रूरता है। इस तरह के प्रकरण में वैवाहिक संबंध टूटने के बाद फिर से जुड़ना संभव नहीं है। इन परिस्थितयों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने डा. पति की अपील स्वीकार करते हुए तलाश का आदेश दिया है।
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